मंगलवार, 28 अगस्त 2018

धारा 125 क्या है ? व इसमें पत्नी गुजारा भत्ता नियम क्या है?

सवाल :- गुजारा भत्ता या भरण पोषण मेंटेनेन्स की धारा 125 सी.आर.पी.सी. Section 125 crpc for maintenance क्या होती है इसमें कैसे कोई महिला अपने पति से गुजारा भत्ता ले सकती है और केस जीत सकती है तथा पति कैसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से बच सकता है क्या बुजुर्ग माता पिता भी अपने बेटे से खर्चा ले सकते है  कृपया इसके बारे में विस्तार से बताये |

जबाव :- धारा 125 सी.आर.पी.सी. गुजारा भत्ता/ मेंटेनैन्स देने के लिए बना एक कानून है इसमें वे व्यक्ति जो की अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ है | जिसमे पत्नी अपने पति से, बच्चे अपने पिता से,  तथा वर्द्ध माता पिता अपने बेटे से, इस धारा के अंतर्गत गुजरा भत्ता ले सकते है | इस धारा 125 सी.आर.पी.सी.  का पूर्ण हिंदी रूपान्तर निष्कर्ष समेत निचे दिया है  इस धारा में कुल 5 क्लाज है |

धारा 125 सी.आर.पी.सी.:-  पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण-पोषण के लिए

  • यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति – इनका भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है या भरणपोषण करने से इंकार करता है

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो की अच्छा कमाता है तथा किसी दुसरे का भरण पोषण करने में समर्थ है लेकिन वो मेंटेनैन्स नही देना चाहता हो )

(क) अपनी पत्नी का, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या

(ख) उसकी धर्मज या अधर्मज अवयस्क संतान का, चाहे वो विवाहित हो न हो, जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है, या

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार, धर्मज सन्तान से मतलब  व्यक्ति की क़ानूनी सन्तान, जो की उसकी धर्म पत्नी से पैदा हुई हो तथा  अधर्मज संतान,  वो सन्तान जो की उसने बिना शादी या दूसरी शादी  या फिर किसी लडकी को धोखा दे कर धोखे से पैदा की हो से है | तथा वो संतान शादी शुदा हो या नही हो या फिर वो अपना भरण पोषण करने में समर्थ नही हो, से है)

(ग) अपनी धर्मज या अधर्मज संतान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है) जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहा ऐसी संतान किसी शरीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार उस व्यक्ति के क़ानूनी और गैर क़ानूनी बच्चे, जो की मानसिक रूप से कमजोर है और अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है | जिसमे शादी शुदा बेटी शामिल नहीं है से है)

(घ) अपने पिता या माता का, जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है,

परन्तु यह और की प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता के भरणपोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय पर निदेश दे:

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार कोई भी प्रथम वर्ग का जज, व्यक्ति को ये आदेश दे सकता है की वह अपनी पत्नी, बच्चो या माता पिता को हर महीने गुजारा भत्ता दे और अगर इन में से कोई व्यक्ति स्वय ऐसा करने में समर्थ नही हो | जैसे की बच्चे, मानसिक रूप से कमजोर बच्चे या फिर ज्यादा वर्द्ध माता पिता, तो ऐसी स्तिथि में कोर्ट ये मासिक भत्ता किसी दुसरे व्यक्ति को जो की उनके रख रखाव कर सके दे सकती है | (जैसे की कोर्ट बच्चो के केस में,  उनकी माँ उनका खर्चा लेती है) 

परंतु यह और की मजिस्ट्रेट अवयस्क पुत्री के पिता को निर्दिष्ट खण्ड (ख) के अनुसार ऐसा आदेश दे सकेगा की जब तक वह वह लडकी वयस्क नहीं हो जाती है वो उसे  भत्ता दे | यदि मजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट समाधान हो जाता है कि ऐसी अवयस्क पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, उसके पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार कोर्ट व्यक्ति को ये आदेश दे सकेगी की जो पहले दिए गये खण्ड (ख) में दिये गए बच्चो की परिभाषा के अनुसार अपनी बेटी को मासिक भत्ता देगा तथा अगर उसकी बेटी शादी शुदा है लेकिन वह अभी बालिक नहीं हुई है और उसका पति भी कमाने में समर्थ नही है तो ऐसी स्तिथि में भी वो व्यक्ति अपनी बेटी को गुजरा भत्ता देगा) 

परंतु यह और कि इस उपधारा के अधीन मासिक भत्ते से संबंधित भरण-पोषण की कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को आदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी संतान, पिता या माता, को अंतरिम भरण-पोषण और ऐसी कार्यवाही के खर्चे, का मासिक भत्ता दे जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे और उसका संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसके लिए वह समय पर निर्देश दे।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार जब कोई व्यक्ति कोर्ट में केस डालता है तो उसको आदेश अंत में दिया जाता है | लेकिन इस उप धारा के अनुसार शिकायतकर्ता को मासिक भत्ता देने का अंतिम आदेश तो अंत में ही होगा | लेकिन कोर्ट उसको केस के शुरुआत में ही गुजरा भत्ता दिलवाना शुरू करवाने का अंतरिम आदेश दे सकेगा और ये आदेश केस के फ़ाइनल होने तक रहेगा ) 

परंतु यह और भी कि इस दितीय परंतुक के अधीन इस अंतरिम भरण-पोषण, कार्यवाही के खर्चे और  मासिक भत्ता के लिए के आवेदन को यथा सम्भव हो आवेदन की सूचना ऐसे व्यक्ति को तामील होने के बाद से 60 दिन के अंदर निपटा दिया जायेगा ।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार कोर्ट को चाहिए की जिस दिन दोषी व्यक्ति को कोर्ट से समन मिल जाये की उसके खिलाफ कोर्ट में केस चल रहा है उस दिन से अगले 60 दिनों में वह उस केस का  अंतिम रूप से फेसला कर दे )    {लेकिन जैसा की आप लोग जानते है की कोर्ट के उपर काम के दबाव के कारण ये सम्भव नही होता है}

स्पष्टीकरण – इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए –

(क) ‘अवयस्क’ से मतलब ऐसे व्यक्ति से अभिप्रेत है जिसके बारे में भारतीय वयस्कता अधिनियम के उपबंधों के अधीन यह समझा जाता है कि उसने व्यस्कता प्राप्त नहीं की है।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार नाबालिक से मतलब उस व्यक्ति से है जो की भारतीय व्यस्क अधिनियम के तहत जो उम्र दी हो वो पूरी नही की हो)  {वैसे अभी तक बालिक होने की उम्र 18 वर्ष है तथा उससे से निचे की उम्र का इन्सान नाबालिक जाना जाता है }

(ख) ‘पत्नी’ के अंतर्गत ऐसी स्त्री से है, जिससे उसके पति ने विवाह-विच्छेद कर लिया है, या उसने विवाह-विच्छेद लिया है, और उसने पुनर्विवाह नही किया है।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार धर्म अनुसार शादी करने के अलावा वह स्त्री भी पत्नी समझी जाएगी | जिसको उसके पति ने कानूनन  तलाक दे दिया हो या फिर उसने अपने पति को कानूनन तलाक दे दिया हो या फिर इस तलाक होने के बाद भी उसने शादी नही की हो)

(2) भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण के लिए ऐसा कोई भत्ता या कार्यवाही के खर्चे आदेश की तारीख से, या यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण और कार्यवाही के खर्चे, जैसी भी स्थिति हो आवेदन की तारीख से संदेय होगा।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार जिस दिन कोर्ट में शिकायत कर्ता ने केस फ़ाइल् किया था उस दिन से शिकायत कर्ता को खर्चा दिया जाएगा | ये खर्चा कोर्ट के अंतरिम आदेश व अंतिम आदेश/ जजमेंट  दोनों के अनुसार इसी दिन से शुरू होगा)

(3) यदि कोई व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रीति से उदगृहीत किए जाने के लिए वारण्ट जारी कर सकता है जैसी रीति जुर्माने से उदगृहीत करने के लिए उपबंधित है और उस वारण्ट के निष्पादन के पश्चात प्रत्येक मास के न चुकाए गए भरण-पोषण या अंतरिम भरण-पोषण का भत्ता और कार्यवाही के खर्चे जैसी भी स्थिति हो या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिए अथवा यदि वह उससे पूर्व चुका दिया जाता है तो चुका देने के समय तक के लिए कारावास का दण्डादेश दे सकता है |

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार कोई व्यक्ति अगर कोर्ट के आदेश को नही मानता है तो कोर्ट उस को समन करेगी तथा दंड देगी दंड के रूप में उस व्यक्त को एक मास के भत्ते के लिए एक महिना जेल में भेज सकती है अगर वह व्यक्ति मासिक भत्ता दे चूका है तो जब तक उसने वो भत्ता नही दिया था उस दिन तक जेल में भेज सकती है) {लेकिन जैसा की आप लोग जानते है की ऐसा नही होता है अगर कोई व्यक्ति अपना पैसा कोर्ट में आकर देर से भी चूका देता है तो कोर्ट उसको जेल में नही भेजती है}

परंतु यह की इस धारा के अधीन देय किसी रकम की वसूली के लिए कोई वारण्ट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उदगृहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है:

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार अगर शिकायत कर्ता कोर्ट के  मेंटेनन्स के आदेश होने के बाद कोई मेंटेनन्स नही मिलने की स्तिथि में अगर अगले एक साल के अंदर कोर्ट में अपना दावा नही करता है तो कोर्ट दोषी के खिलाफ कोई क़ानूनी कार्यवाही या आदेश पारित नही करेगी और केस को कैंसिल कर देगी) {ऐसा होने स्तिथि में आप सेक्शन 5 लिमिटेशन एक्ट में एक अपलीकेशन लगा कर कोर्ट से आदेश पारित करवा सकते है}

परंतु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की प्रस्थापना करता है कि, उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इंकार करती है | तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इंकार के किन्हीं आधारों पर विचार कर सकता है और ऐसी प्रस्थापना के किए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है | यदि, उसका सामाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्यायसंगत आधार है ।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार अगर कोई पति कोर्ट से ये आवेदन करता है की वह जब अपनी पत्नी को गुजरा भत्ता देगा | जब वह उसके साथ रहेगी तो कोर्ट उस के इस आवेदन पर विचार करेगी  तथा उचित निर्णय देगी अगर कोर्ट को लगे की पत्नी के पास कोई तर्क संगत कारण नही है तो वो पत्नी के केस को  निरस्त भी कर सकती है)

स्पष्टीकरण – यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखेल रखता है | तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इंकार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा।

निष्कर्ष :- (पति के दूसरी शादी करने या फिर रखेल रखने की स्तिथि में पत्नी अपने पति से अलग रह कर गुजरे भत्ते की मांग करे | तो, वो मांग न्याय संगत होगी  | ऐसी स्तिथि में पति अपनी पत्नी को साथ रखने की मांग करके,  गुजरा भत्ता नही देने की मांग नही कर सकता है)

(4) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन, भरण-पोषण का भत्ता और कार्यवाही के खर्चे, के जैसी भी स्थिति हो प्राप्त करने की हकदार न होगी | यदि वह जारता की दशा में रह रही है, अथवा यदि, वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है | अथवा यदि,  वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे है।

निष्कर्ष :- (इस धारा के अनुसार अगर पत्नी अपने पति से बिना किसी कारण या तर्क संगत आधार के बिना अलग रहती है या फिर वो चरित्रहीन है और उसका पराये मर्दों से सम्बन्ध है या फिर दोनों पति पत्नी अपनी मर्जी से अलग रह रहे है  | तो ऐसी स्तिथि में पत्नी मेंटेनन्स की हक दार नहीं होगी)

(5) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रदद कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है अथवा वे पारस्परिक सम्मति से पृथक रह रहे है ।

निष्कर्ष :- (अगर कोर्ट को ये पता चलता है की पत्नी चरित्रहीन हो गई है तथा उसके गैर मर्दों से सम्बन्ध हो गए है या फिर वो अपनी मर्जी से बिना कोई तर्क संगत कारण के अलग रहने लग गई है या फिर पति पत्नी दोनों अपनी मर्जी से अलग रह रहे है  तो ऐसी स्तिथि कोर्ट मेंटेनन्स का अपना दिया हुआ आदेश रद्द  कर सकती है)

कौन लोग खर्चा ले सकते है :- धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत हर वो साधन सम्पन्न व्यक्ति जो की, किसी दुसरे का खर्चा वहन करने में समर्थ हो वो इन लोगो को मासिक भत्ता देगा –

अपनी पत्नी को, जो बेरोजगार हो तथा छोटे बच्चो के कारण या फिर अन्य कारणों से अपना खर्चा वहन करने में असमर्थ हो
पति, मुस्लिम होने की स्तिथि में, उसकी सभी चारो क़ानूनी पत्नियो को  |
अपने नाबालिक बच्चे को, जो (वैध व अवैध संतान) जो खर्चा करने में असमर्थ हो | (अपने लीगल हेयर के द्वारा)
अपने नाबालिक बच्चे को, जो (वैध व अवैध संतान) {जिसमे विवाहित पुत्री सामिल नहीं है} जो शाररिक व मानसिक रूप से स्वय का खर्चा करने में असमर्थ हो (अपने लीगल हेयर के द्वारा)
अपनी नाबालिक विवाहित बेटी को, जिसका पति पैसा कमाने में समर्थ नही है (अपने लीगल हेयर के द्वारा)
बलिक कुआरी बेटी को, जिसकी शादी नही हुई हो (जब तक बेटी की शादी नही हो जाती वह अपने पिता से खर्चा ले सकती है)
अपना विवाहित, नाबालिक बेटा
गोद लिए हुए नाबालिक बच्चे को, जिसमे उपर दिए हुए कालम नुम्बर 3, 4, व 5 की परिभाषा भी शामिल है
अपने माता पिता को, जो वर्द्ध या लाचार हो तथा जिनका कमाई का कोई साधन नही हो या फिर उनकी कमाई बहुत कम हो |
कौन लोग खर्चा नही ले सकते है :- धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत ये लोग,  जो व्यक्ति के खर्चा देने के समर्थ होने के बावजूद, भी इससे खर्चा नही ले सकते है |

हिन्दू पति होने की स्तिथि में, पहली पत्नी के रहते दूसरी पत्नी खर्चा नही ले सकती है |
चरित्रहीन पत्नी , जो पराये पुरुष के सम्पर्क में रहती हो
अपनी मर्जी से, बिना किसी तर्क संगत कारण के अलग रहने वाली पत्नी
पति के साथ सहमती बनाने के बाद, अलग रहने वाली पत्नी
खर्चा बधने के बाद, अपने पति को छोड़कर अपनी मर्जी से अगल रहने वाली पत्नी
बालिक विवाहित बेटी
बालिक बेटा
पत्नी केस कैसे जीते :-  धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत पत्नी इन बातो का आधार बना कर अपना केस जीत सकती है

पत्नी को चाहिए की वो कोर्ट में वे सब सबूत दे जो की पति की इनकम से सम्बन्धित हो जैसे की पति की सलेरी स्लिप, टैक्स रिटर्न स्लिप, किसी और साधान से आने वाली इनकम का सबूत जैसे किराया और जमीन से होने वाली इनकम के सबूत इत्यादि
कोर्ट में साबित करे की आप के पति की इनकम तो है, लेकिन उनकी नियत आपको पैसे देने की नही है जैसे की माता पिता या बहन के सिखाये में, फिर कंजूस होने के कारण या फिर शक्की होने के कारण इत्यादि |
आपके पति अगर किसी पराई औरत के सम्पर्क में रहते है, तो उसका भी वर्णन करे | ये बात भी आपका केस मजबूत करेगी
अपने आप को बेरोजगार बताये तथा ये साबित करने की कोशिश करे | की, आप के पास कमाने के कोई साधन भी नही है
अगर आपके पति शक्की है | तो ये भी कहे की आपके पति आपके बाहर जाने पे शक करते है
अगर आपका पति आपको मारता पिटता है | तो वो भी साथ नही रहने और दूर रह कर खर्चा लेने का आधार हो सकता है
अगर कोई बीमारी हो या, कोई इलाज चल रहा हो तो उसके बिल साथ लगाये
बच्चे छोटे हो तो, उनके पालन पोषण का बहाना ले | पति अगर अपनी इनकम छुपाये तो कोर्ट में धारा 91 सी.आर.पी.सी. में अप्लिकेशन लगा कर उससे ही उसकी इनकम का सोर्स पता चलवाए (धरा 91 सी.आर.पी.सी. ये बहुत बड़ा टॉपिक हो जायेगा इसलिए लेखक द्वारा इसके बारे में विस्तार से नही लिखा जा रहा है)
बच्चे केस कैसे जीते :-  धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत बच्चो का केस करने की जिम्मेदारी माँ या फिर उनका पालन पोषण करने वाले अन्य रिश्तेदारों की होती है बच्चो के खर्चे का आधार उनकी आजीविका के अलावा उनके स्कूल का खर्चा व अन्य समाजिक जरूरते भी होती है

बच्चे अगर स्कूल में पड़ रहे है तो उनके स्कूल की फीस व अन्य स्कूल के खर्चो का बोयरा दिया जाना चाहिये
बच्चो के जन्मदिन के खर्चे व इस प्रकार के अन्य खर्चो का बोयरा भी दिया जाना चाहिये | क्योकि बच्चो के पूर्ण समाजिक विकास के लिए ये खर्चे भी जरूरी है
माता पिता केस कैसे जीते :- वैसे तो माता पिता अगर 60 वर्ष से ज्यादा है तो धारा 125 सी.आर.पी. सी. के अंतर्गत उनके केस की सुनवाई भी जल्दी होगी |

अपनी बडती उम्र का सबूत केस के साथ लगाये
अगर कोई बिमारी हो तो उसके पेपर और बिल भी साथ लगाये
सिर्फ यही बेटा है या कोई अन्य देखभाल करने वाला नही है उसका वर्णन भी करे
अगर अन्य कोई खर्चे है तो उनका बिल साथ लगाये
धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत पति अपनी पत्नी से केस कैसे जीते :-

पति को चाहिए की पत्नी अगर कमाती है या फिर शादी से पहले कमाती थी | उसका सबूत पेश करे
पत्नी अगर अपनी मर्जी से अलग रह रही है | तो, उसको कोर्ट में साबित करे
ज्यादातर पत्निया केस के चलते अपने पति के साथ नही रहना चाहती है | तो आप कोर्ट के सामने इस बात पर जोर दे की | आपकी पत्नी आप के साथ रहे, तब आप उसे ख़ुशी से खर्चा देंगे | ऐसी स्तिथि में पत्नी के लिए परेशानी होगी की वो ये साबित करे की वो क्यों अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है | इसके चलते पति अपनी पत्नी के खिलाफ धारा 9 हिन्दू मैरिज एक्ट में अपनी पत्नी को घर लाने का केस फ़ाइल् करके भी दबाव बना सकता है |
अगर आपकी पत्नी चरित्रहीन है तो, उसके सबूत कोर्ट में पेश करे | इस बात को साबित करके आप अपनी पत्नी को खर्चा देने से बच सकते है |
आपकी कमाई के साधन आपकी पत्नी ने बताये है वो अगर आप नकार देते है | तो उनको साबित करने का दबाव आपकी पत्नी पर आ जाता है | और ना साबित करने किस स्तिथि में ये आपके फेवर में जाता है |
नोट :- किसी भी केस को जितने के लिए केस में सामने वाली पार्टी का सही तरीके से क्रॉस करना बहुत जरूरी है इसलिए आप अगर अच्छा क्रॉस कर सके तो आप केस को पलट भी सकते है  (बच्चो व माता पिता से केस कैसे जीते इसका वर्णन लेखक नही कर रहा है)

केस फ़ाइल् कैसे करे :-   धारा 125 सी.आर.पी.सी. का केस फ़ाइल करने के लिए इन कुछ जरूरी बातो का ध्यान रखना जरूरी है

सबसे पहले दोषी व्यक्ति से अपना सम्बन्ध बताये तथा पत्नी , बच्चे होने की स्तिथि में बच्चो का वर्णन करे | अगर बच्चे स्कूल भी जाते हो तो, उसके खर्चे का वर्णन करे
अपनी न कमाने की मज़बूरी बताये | जिसमे उम्र, बीमारी, व पत्नी के लिए छोटे बच्चे हो सकते है
दोषी व्यक्ति की कमाई का सबूत लगाये अगर नही है तो वर्णन करे |
दोषी व्यक्ति के रहन सहन शानो शोकत का वर्णन करे तथा पत्नी के लिए जरूरी है की वह अपनी भी शादी में किये खर्चे व हसियत का वर्णन करे | तथा अपना रहन सहन ऊचा बताये
माता पिता अगर 60 वर्ष से उपर है | तो वे अपनी उम्र का सबूत लगाये व वरिष्ट नागरिक है ऐसा लिखे | तब उनके केस की जल्दी सुनवाई होगी
पत्नी के लिए ये जरूरी है की वो इस केस के साथ अपना इनकम सर्टिफिकेट भी लगाएगी (सुप्रीम कोर्ट के फोर्मेट के अनुसार) तथा कई राज्यों में ये केस फ़ाइल होने के बाद माँगा जाता है वैसे ऐसा सिर्फ पति व पत्नी के केस में होता है
शिकायतकर्ता का पासपोर्ट फोटो भी केस में लगता है
केस फ़ाइल् का क्षेत्राधिकार :- कोर्ट में धारा 125 सी.आर.पी.सी. का केस पत्नी, बच्चो व माता पिता व गोद लिए बच्चे के द्वारा निम्नलिखित जगह पर किया जा सकता है :-

पत्नी के सम्बन्ध में :- (क) जहा पर शादी हुई हो (ख) जहा पर पहली बार साथ रहे हो (ग) जहा पर आखरी बार साथ रहे हो (घ) जिस जगह पर नाबालिक बच्चे अपनी माँ के साथ रहते हुये स्कुल जाते हो |
माता पिता के सम्बन्ध में :- (क) जहा पर वे अपने बेटे के पैदा होने के समय रहते हो (ख) बेटा पैदा होने समय जहा पर पिता रह रहा हो उस स्थान पर सिर्फ पिता ही केस फ़ाइल् कर सकता है (ग) जहा पर आखरी बार वे अपने बेटे के साथ रहे हो
बच्चो के सम्बन्ध में :- (क) जहा पर बच्चे का जन्म हुआ हो (ख) जहा पर वह अपने पिता के साथ आखरी बार रहा हो (ग) जिस जगह वो स्कूल में जाता हो (घ) जहा पर बच्चे की माँ, स्वय का केस फ़ाइल् कर सकती हो उस जगह पर
गोद लिए बच्चे के सम्बन्ध में :- (क) जहा पर बच्चा गोद लिया गया हो (ख) जहा पर वह अपने माता पिता के साथ पहली व आखरी बार रहा हो |
नोट :- गोद लिया गया बच्चा माता व पिता दोनों पर ही खर्चे का केस कर  सकता है क्योकि वो दोनों के द्वारा ही गोद लिया जाता है

कोर्ट कितना खर्चा तक बांध सकती है :- यह की धारा 125 सी.आर.पी. सी.के तहत कोर्ट आरोपी व्यक्ति की इनकम व रहने के स्टेट्स के आधार को देखते हुए शिकायतकर्ता को  गुजरा भत्ता दिलवाती है ये खर्चा कितना भी हो सकता है हजारो से लेकर लाखो-करोड़ो रूपए महिना भी |

पुलिस का रोल :- धारा 125 सी.आर.पी. सी. के अंतर्गत कोर्ट के केस में पुलिस का रोल सिर्फ दोषी व्यक्ति को समन पहुचाने का व सजा होने जेल ले जाने का होता है |

जमानत  :-  इस केस में जमानत की जरूरत नही होती है  

पत्नी अगर कमाती है तो भी क्या अपने पति से धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत खर्चा ले सकती है :-

जी हा,  धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत, अगर पत्नी कमाती है और उसकी कमाई उसके पति से कम है | तो ऐसी स्तिथि में भी वो अपने पति से खर्चा ले सकती है | लेकिन ऐसे में उसकी इनकम अपने पति से कम होनी चाहिये | ऐसा इसलिए है क्योकि पत्नी को भी अपने पति के बराबर स्टेटस रखने का क़ानूनी हक़ है और इसके बारे में कोर्ट की काफी जजमेंट है

पत्नी अगर अपने पति से ज्यादा कमाती है तो भी क्या उसे अपने पति से अपने बच्चो का खर्चा लेने का हक है :- जी हा, धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत, पत्नी अगर अपने पति से ज्यादा कमाती भी है | तो भी उसे अपने पति से अपने बच्चो का खर्चा लेने का हक़ है | क्योकि इस धारा के अनुसार बच्चो के पालन पोषण की जिम्मेदारी पिता की ही होती है  |

खर्चा बढवाने के सम्बन्ध में याचिका :- शिकायतकर्ता को कुछ समय बाद अगर लगता है की उसका खर्चा ज्यादा हो गया है तथा उसका मासिक खर्चा बढना चाहिये तो आप धारा 127 सी.आर.पी.सी. के  तहत कार्यवाही कर सकते है और अपना खर्चा कोर्ट से समय-समय पर व अपनी जरुरतो के हिसाब से बढवा भी सकते है |

क्या लिव इन रिलेसनशिप में रहते हुए भी कोई महिला  धारा 125 सी.आर.पी.सी. के तहत खर्चा ले सकती है :- जी हा, धारा 125 सी.आर.पी.सी. के अंतर्गत महिला ऐसा कर सकती है | बशर्ते की वो व्यक्ति शादी शुदा नही हो | अगर वह व्यक्ति शादी शुदा है तो वो औरत खर्चा नही ले सकती है  | ये खर्चा सिर्फ उस व्यक्ति के साथ एक ही छत के निचे रहते हुए ही लिया जा सकता है उसके लिए सुप्रीम कोर्ट की एक जजमेंट है “ चनमुनुजा वरसीसम वीरेंद्र कुमार सिंह कुशवाहा जे.टी. 2010 (11) sc 132 (sc)”.