गुरुवार, 27 सितंबर 2018

एडल्ट्री कानून : धारा 497 हुई खत्म , अब शादी से बाहर सम्बन्ध बनाने पर नहीं होगी जेल
नई दिल्ली: व्यभिचार यानी शादी के बाहर के शारीरिक संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से व्यभिचार की धारा को खत्म कर दिया. बेंस की सदस्य जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा, "मैं धारा 497 को खारिज करती हूं.'' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये कानून 157 साल पुराना है, हम टाइम मशीन लगाकार पीछे नहीं जा सकते. हो सकता है जिस वक्त ये कानून बना हो इसकी अहमियत रही हो लेकिन अब वक्त बदल चुका है, किसी सिर्फ नया साथी चुनने के लिए जेल नहीं भेजा सकता.

फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''पति पत्नी का मालिक नहीं है, महिला की गरिमा सबसे ऊपर है. महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है. पत्नी 24 घंटे पति और बच्चों की ज़रूरत का ख्याल रखती है.'' कोर्ट ने कहा कि यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमयन्ते तत्र देवता, यानी जहां नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं.


कोर्ट ने यह भी कहा, ''सेक्शन 497 पुरुष को मनमाना अधिकार देने वाला है. ये अनुच्छेद 21 (गरिमा से जीवन का अधिकार) के खिलाफ है. घरेलू हिंसा कानून से स्त्रियों को मदद मिली लेकिन धारा 497 भी क्रूरता है.'' कोर्ट ने कहा, ''व्यभिचार को अपराध बनाए रखने से उन पर भी असर जो वैवाहिक जीवन से नाखुश हैं, जिन का रिश्ता टूटी हुई सी स्थिति में है. हम टाइम मशीन में बैठकर पूराने दौर में नहीं जी सकते.''
पढ़ें पूरी खबर : एडॉल्ट्री कानून धारा 497

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

धारा 354B क्या है ?
आईपीसी की धारा 354B क्या है :- कुछ भी जानने से पहले यह जान ले कि यह धारा गैर-जमानती है अर्थात इस अपराध का मामला दर्ज होने पर जमानत अदालत ले लेनी होगी दूसरा, अगर आरोप सिद्ध हो गया तो कम से कम तीन वर्ष का कारावास है जो सात वर्ष तक हो सकता है।
जिस अपराध को यह धारा दंडित करती है वह एक सभ्य समाज में कुकर्म या बुरा कार्य कहलाता है। किसी पुरुष द्वारा अपराध-बोध रखते हुए बल पूर्वक या हमले द्वारा किसी स्त्री को नग्न करना या नग्न होने के लिए विवश करना उस पुरुष की दूषित मानसिकता को दर्शाता है और इस कुकर्म के लिए उसको सजा मिलनी ही चाहिए। भारत जहां नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है वहां कोई भी पुरुष जो सभ्य है वो स्त्री का सम्मान करेगा अगर कोई द्धवेष भी है तो बातचीत द्वारा उसका हल निकलना चाहेगा वह कभी भी इस तरह का वहशी और कायरता पूर्ण कार्य अपनी वासना या किसी आपराधिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नहीं करेगा।
कई बार प्रश्न उठता है कि
- क्या आईपीसी की धारा 354B का गलत प्रयोग हो रहा है ?
सम्भव है, सामाज में अच्छी और बुरी प्रवृति के लोग होते है और उन लोगों में बुरे पुरुष भी हो सकते है और महिलाएं भी और सम्भव है कि कोई भी महिला अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी पुरुष पर यह आरोप लगा सकती है पर यहाँ समझने वाली बात यह है कि इस अपराध को घटने के लिए पुरुष का महिला के पास होना जरुरी है। अगर पुरुष महिला के पास नहीं था तो यह बात तहकीकात में सामने आ ही जाएगी।
इसलिए अगर किसी पुरुष का किसी महिला से विवाद है तो वह अपने विवेक का प्रयोग करते हुए निर्णेय ले कि उसे उस महिला के साथ जब भी मिलना हैं तो सार्वजनिक स्थान में भीड़ भाड़ वाली जगह में मिले और निश्चित दुरी बनाएं रखे।
- क्या इस धारा का प्रयोग सिर्फ महिलाएं ही कर सकती है ?
जी हाँ, इस धारा में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि यदि "कोई पुरुष, जो किसी स्त्री को विवस्त्र करने या निर्वस्त्र होने के लिए विवश करता है" हाँ, अगर इस अपराध को कराने में किसी महिला ने किसी पुरुष को उकसाया है तो इस अपराध में उस महिला पर धारा सुनिश्चित करके मामला दर्ज किया जा सकता है यह उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

Indian Penal Code Section 354B
Assault or use of criminal force to woman with intent to disrobe [1]--
Any man who assaults or uses criminal force to any woman or abets such act with the intention of disrobing or compelling her to be naked, shall be punished with imprisonment of either description for a term which shall not be less than three years but which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
धारा 354c क्या है ?
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354c
दृश्यरतिकता [1]-- कोई पुरुष, जो प्राइवेट कार्य में संलग्न स्त्री को उन परिस्थितियों में देखेगा या का चित्र खींचेगा, जहां उसे सामान्यता या तो अपराधी द्वारा या अपराधी की पहल पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा देखे न जाने की प्रत्याशा होगी, या ऐसे चित्र को प्रसारित, प्रथम दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से न्यून न होगी, किन्तु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा एवं जुर्माने से भी दंडनीय होगा और द्वितीय या पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि पर दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष से न्यून नहीं होगी, किन्तु जो सात वर्ष तक को हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

स्पष्टीकरण 1 : इस धारा के प्रयोजनों के लिए, "प्राइवेट कार्य" के अंतगर्त उस स्थान में किया गया देखने का कार्य भी शामिल है, जो परिस्थियों में युक्तियुक्त रूप से एकांतता उपलब्ध कराने के लिए प्रत्याशित होगा और जहां पीड़िता की जननेंद्रिय, नितम्ब या वक्ष स्थल प्रकट होते है या केवल अधोवस्त्र में ही ढंके होते है या पीड़िता शौचालय का प्रयोग कर रही है या पीड़िता मैथुन कार्य कर रही है, जो इस प्रकार का कार्य नहीं है, जिसे साधारणतया सार्वजनिक रूप से किया जाता है।

स्पष्टीकरण 2 : जहां पीड़िता चित्रों या किसी अभिनय का चित्र को खींचने की, किन्तु पर-व्यक्ति के समक्ष उन्हें प्रसारित न करने की सम्मति देती है और जहां ऐसे चित्र या अभिनय का प्रसारण किया जाता है, वहां ऐसा प्रसारण इस धारा के अधीन अपराध माना जाएगा।

दृश्यरतिकता
1. प्रथम दोषसिद्धि पर एक से तीन वर्ष तक का कारावास और जुर्माना
संज्ञेय या काग्निज़बल
 जमानती

2. द्धितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि पर तीन से सात वर्ष तक का कारावास और जुर्माना
   गैर-जमानती

विचारणीय : किसी भी मेजिस्ट्रेट द्वारा
यह अपराध कंपाउंडबल अपराधों की सूचि में सूचीबद्ध नहीं है।

Any man who watches, or captures the image of a woman engaging in a private act in circumstances where she would usually have the expectation of not being observed either by the perpetrator or by any other person at the behest of the perpetrator or disseminates such image shall be punished on first conviction with imprisonment of either description for a term which shall not be less than one year, but which may extend to three years, and shall also be liable to fine, and be punished on a second or subsequent conviction, with imprisonment of either description for a term which shall not be less than three years, but which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.Explanations
 

  • For the purpose of this section, “private act” includes an act of watching carried out in a place which, in the circumstances, would reasonably be expected to provide privacy and where the victim’s genitals, posterior or breasts are exposed or covered only in underwear; or the victim is using a lavatory; or the victim is doing a sexual act that is not of a kind ordinarily done in public.
  • Where the victim consents to the capture of the images or any act, but not to their dissemination to third persons and where such image or act is disseminated, such dissemination shall be considered an offence under this section.
धारा 324 क्या है ? इसमें सजा और जुर्माना का क्या प्रावधान है ?
धारा 334 द्वारा प्रदान किए गए मामले को छोड़कर जो कोई भी, घोपने, गोली चलाने या काटने के किसी भी साधन के माध्यम से या किसी अपराध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण से स्वेच्छापूर्वक ऐसी चोट पहुंचाए, जिससे मॄत्यु कारित होना सम्भाव्य है, या फिर आग के माध्यम से या किसी भी गरम पदार्थ या विष या संक्षारक पदार्थ या विस्फोटक पदार्थ या किसी भी पदार्थ के माध्यम से जिसका श्वास में जाना, या निगलना, या रक्त में पहुंचना मानव शरीर के लिए घातक है या किसी जानवर के माध्यम से चोट पहुंचाता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा।

लागू अपराध
खतरनाक शस्त्रों आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छा से आघात पहुंचाना
सजा - 3 वर्ष कारावास या आर्थिक दंड या दोनों

यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।

यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

Indian Penal Code Section 324
Voluntarily causing hurt by dangerous weapons or means.-- Whoever, except in the case provided for by IPC Section 334, voluntarily causes hurt by means of any instrument for shooting, stabbing or cutting, or any instrument which, used as a weapon of offence, is likely to cause death, or by means of fire or any heated substance, or by means of any poison or any corrosive substance, or by means of any explosive substance or by means of any substance which it is deleterious to the human body to inhale, to swallow, or to receive into the blood, or by means of any animal, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, or with fine, or with both. 
भारत में दण्ड विधि और दण्ड के प्रकार
भारत में दण्ड विधि और दण्ड के प्रकार :-
दण्ड विधि के रूप में भारत में कई विधियाँ हैं लेकिन सामान्य रूप में I.P.C.,1860 लागू है . कहने को तो यह 150 साल से भी अधिक पुरानी है लेकिन समय समय पर संशोधन कर इसे अनुकूल बनाया जाता रहा है .
अपराधी को भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत 6 प्रकार का दंड का प्रावधान किया गया हैं ,इसके अंतर्गत दण्ड के निम्न प्रकार हैं :-

  1. मृत्युदण्ड
  2. आजीवन कारावास 
  3. कारावास, जो सादा या कठोर हो 
  4. संपत्ति की जब्ती 
  5. जुर्माना
कालेपानी की सजा अब समाप्त कर दी गयी है. मृत्युदण्ड भी कुछ विशेष अपराध में ही है, जैसे-हत्या, फिरौती के लिए अपहरण, बलात्संग के कुछ विशिष्ट मामले आदि. आजीवन कारावास का मतलब जीवन भर का कारावास है. हालांकि केंद्र या राज्य सरकार इसे घटाकर 14 वर्ष का कर सकती है. कारावास में पूरे 24 घंटे का हीं एक दिन होता है. कुछ लोगों का भ्रम कि दिन और रात अलग अलग गिने जाते हैं, सही नहीं है. जुर्माना न्यायालय को प्रदत्त शक्ति के अधीन होता है.
शिशु द्वारा अपराध क्या है ? इसमें सजा और जुर्माना क्या है ?
शिशु द्वारा अपराध:

I.P.C. 1860 के अनुसार 7 वर्ष से कम उम्र का बच्चा कोई अपराध नहीं कर सकता. इसलिए वह कभी दण्डित नहीं होगा. 7 से अधिक लेकिन 12 वर्ष से कम के बच्चे के लिए समझ का अभाव साबित करने पर वह भी दण्ड से बच जायेगा. इससे अधिक उम्र वाले दण्डित होंगे.
हालांकि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट से यह व्यवस्था की गयी है कि अठारह वर्ष तक का व्यक्ति अधिकतम 3 वर्ष तक की सजा पा सकता है और वो भी रिमांड होम में रहकर. उसे इससे अधिक सजा नहीं हो सकती है. उसकी सजा से संबंधित रिकार्ड भी सजा समाप्त होने पर नष्ट कर दिए जाने का प्रावधान है. इनमें परिवर्तन को लेकर विचार चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट मे भी यह विचाराधीन है.
सुनंदा पुष्कर मृत्यु जैसे मामले में पहली पुलिस कार्रवाई क्या होगी?
सुनंदा पुष्कर मृत्यु जैसे मामले में पहली पुलिस कार्रवाई क्या होगी?

Cr.P.C. की धारा 174 के अनुसार जब पुलिस को यह सूचना मिलती है कि किसी व्यक्ति ने आत्महत्या की है अथवा अन्य द्वारा या जीवजन्तु द्वारा या यन्त्र द्वारा या दुर्घटना द्वारा मारा गया है अथवा ऐसी परिस्थिति में मरा है की अपराध का संदेह है तो मृत्यु समीक्षा करने के लिए सशक्त कार्यपालक मजिस्ट्रेट, जो DM, SDM आदि हो, को वह सूचना देगा और यदि किसी नियम से विशेष निदेश न हो तो घटनास्थल पर जाकर इन्वेस्टीगेशन करेगा एवं मृत्यु के दृश्यमान कारण की रिपोर्ट बनायेगा जिसमे शरीर पर दिखने वाले चोट आदि के साथ साथ यह भी विवरण होगा की वे किस हथियार से किये प्रतीत होते हैं. यह रिपोर्ट पुलिस अधिकारी एवं उपस्थित व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर कर DM या SDM को तत्काल भेजी जाएगी. इसके साथ ही प्राप्त शव पोस्टमार्टम हेतु भेजा जाता है एवं अन्वेषण की अन्य कार्रवाई की जाती है.
न्यायालय में कौन साक्ष्य दे सकता है?
न्यायालय में कौन साक्ष्य दे सकता है? 
साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 118 के अनुसार हर वो व्यक्ति साक्ष्य दे सकेगा जो -

  • पूछे प्रश्न को समझ सकता है,
  • प्रश्न का युक्तिसंगत उत्तर दे सकता है.
जब तक कि निम्न कारण से कोर्ट द्वारा असमर्थ ना समझा जाये:-
  • कम उम्र 
  • अत्यधिक बुढ़ापा 
  • मानसिक या शारीरिक बीमारी 
  • इसी प्रकार के अन्य कारण 

एक पागल व्यक्ति भी साक्ष्य दे सकता है यदि वह प्रश्न समझ सकता है और युक्तिसंगत उत्तर दे सकता है. यदि कोर्ट को लगे कि छोटा बच्चा भी सब कुछ समझ रहा है तो ऐसे गवाही पर सजा भी हो सकती है.
धारा 144 क्या है? आसान शब्दों में समझिये
धारा 144 क्या है? :-
Delhi में धरना रोकने के लिए धारा 144 लगाया गया था.
धारा 144 शब्द का प्रयोग generally Cr.P.C. 1973 की धारा 144 के लिए किया जाता है. इस धारा के अनुसार किसी व्यक्ति को कोई कार्य न करने या अपने कब्जे के अधीन की सम्पत्ति की विशिष्ट व्यवस्था करने का निदेश दिया जाता है. यह निदेश DM, SDM या राज्य सरकार द्वारा सशक्त magistrate शीघ्र आवश्यकता के आधार पर दे सकता है.
यह निदेश लोक शांति भंग होने से बचाने, मानव जीवन, सुरक्षा को खतरे से बचाने बलवा, दंगा आदि को रोकने के purpose से दिया जा सकता है.
ऐसा आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को अथवा किसी स्थान में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान में जाते हैं, निर्दिष्ट किया जा सकता है.
सामान्यतः ऐसे निदेश के अधीन एक जगह पर 5 या अधिक व्यक्तियों को एकत्र होने से रोका जाता है.
धारा 144 के अधीन दिया गया आदेश 2 माह तक ही लागू रह सकता है. विशेष दशा में राज्य सरकार इसे 6 माह तक बढ़ा सकती है.
चोरी, लूट और डकैती क्या है ?
चोरी, लूट और डकैती क्या है ?

चोरी : किसी व्यक्ति के कब्जे से उसकी सहमति के बिना कोई चल सम्पत्ति, जैसे रुपया, घड़ी, सामान आदि, बेईमानी से लेना चोरी होता है. इसके लिए सामान्य दण्ड 3 वर्ष तक जेल या जुर्माना या दोनो सजा है. लेकिन ये चोरी अगर घर में हो तो जेल 7 वर्ष तक का हो सकता है.

लूट : जब चोरी करने के लिए या करने में या चुराई सम्पत्ति ले जाने या उसके कोशिश में कोई हिंसा की जाती है तो यह लूट हो जाता है. सामान्यतया यह 10 वर्ष तक के कठिन कारावास और जुर्माना से दण्डनीय है लेकिन यह लूट राजमार्ग पर हो तो जेल 14 वर्ष तक का हो सकेगा.

डकैती : वहीँ लूट करने वाले व्यक्तियों की संख्या यदि 5 या अधिक है तो यह डकैती कहलाएगी. इसके लिए सामान्य दण्ड आजीवन कारावास या 10 वर्ष का कठिन कारावास एवं जुर्माना है.
धारा 107 का मूल क्या है ?
किसी executive magistrate द्वारा किसी व्यक्ति को परिशान्ति बनाये रखने के लिए बंधपत्र (bond paper) हेतु आदेश न दिया जाये इसके लिए उस व्यक्ति से कारण दर्शाने की अपेक्षा करना हीं धारा 107 का मूल है. यह धारा Cr.P.C.,1973 की धारा है.
इस धारा के तहत executive magistrate किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकता है कि उससे 1 वर्ष की अवधि के लिए बंधपत्र क्यों ना निष्पादित किया जाये. यह अपेक्षा तब की जाएगी जब magistrate को यह सूचना मिलती है की वह व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या ऐसी सम्भावना है कि उसके कार्य से ऐसा हो जायेगा.
इस धारा के अधीन कार्यवाही तब की जा सकती है जब संभावित स्थान उस magistrate की local अधिकारिता के अन्दर हो या उसकी उसकी अधिकारिता के अन्दर का कोई व्यक्ति बाहर जाकर ऐसा कार्य करेगा.
Whats are Offences related to women ?
Offences related to women.
1. Sexual Harassment.......... Sec. 354A of IPC
A man committing any of the following acts.

  • (i) physical contact and advances involving unwelcome and explict sexual overtures or
  • (ii) a demand or request of sexual favours or
  • (iii) showing pornography against the will of a woman or
  • (iv) making sexually coloured remarks,

shall be guilty of the offence of sexual harassment.
punishment rigours imprisonment for a term which may extend to 3 years or with fine or with both.
What is duty of a police officer-in-charge of a police station if he does not lodge an FIR?
Today let us know about duty of a police officer-in-charge of a police station if he does not lodge an FIR ?
IT IS PROVIDED IN SECTION 166B (c) of Indian penal code(IPC) that whoever, being a public servent.
fails to record any information given to him under sub-section (1) of section 154 of Cr.p.c. (which provides us to lodge an FIR of an offence in police station) and specially offences relating to women like,

  • Acid attack (punishable under sec. 326-A of IPC), 
  • Attempt to acid attack (punishable under sec 326-B of IPC ),
  • Assult or criminal force to women with intent to outrage her modesty (punishable under sec 354 of IPC),
  • Sexual harassment (punishable under sec 354-A of IPC)
  • Assult or use of criminal force to woman with intent to disrobe/removing clothes (punishable under sec 354-B of IPC),
  • Human Trafficking (punishable under sec 370 of IPC) 
  • Exploitation of a trafficked person (punishable under sec 370-A of IPC)
  • Rape (punishable under sec 376 of IPC)
  • Rape with causing death or resulting in persistent vegetative state of victim (punishable under sec 376-A of IPC)
  • Sexual intercourse by Husband upon his wife during seperation (punishable under sec 376-B of IPC)
  • SEXUAL INTERCOURSE by a person in authority (punishable under sec 376-C of IPC) 
  • GANG RAPE (punishable under sec 376-D of ipc)
  • Repeat offenders of Rape (punishable under sec 376-E of IPC)
  • Words, Gestures or Acts intended to insult the modesty of a woman (punishable under sec 509 of ipc)

in above cases if police officer/public servent does not lodge an FIR he will be punished with rigours imprisonment for a term which shall not be less than six months but which may extend to 2 years and shall also be liable to fine.
now we talk about the procedure against such public servent/police officer who fails to comply his duty..........
you will have to file a complaint before a magistrate with previous sanction of state government (District Magistrate). this standard procedure is laid down in Section 197 of Criminal Procedure Code-1973.
so frnds its ur right to lodge an FIR of an offence. If police officer does not lodge an FIR you may file a complaint against him.
What is Criminal procedure Code-1973 section 357-C ? Treatment of victims ?
There is a provision added in Criminal procedure Code-1973 section 357-C ,it provides duty of hospitals.
Treatment of victims: All hospitals ( public or private), shall immediately, provide the frist-aid or medical treatment, free of cost, to the victims of Acid attack (punishable under sec 326-A I.P.C.), Rape (376 IPC ), Rape and causing death or resulting in persistent vegetative state of victim (sec 376-A IPC), Sexual intercourse by husband upon his wife during sepration (sec 376-B), Sexual intercourse by a person in authority (376-C), Gang Rape (376-D), repeat offenders of rape (376-E), and shall immediately inform the police of such incedent.
And if such hospital denies or fails to comply its duty, hall be punished with imprisonment for a term which may extend to one year or with fine or with both..
against such hospital you may file Non Cognizable Report (NCR) / complaint before a magistrate.
What should be the necessary document or material to declare a person juvenile (under 18) in a court?
What should be the necessary document or material to declare a person juvenile (under 18) in a court :-
# According to Rule 12 of the Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Rules,2007 only one of these four is material to declare a person juvenile-

  • The matriculation or equivalent certificate
  • The date of birth certificate from the school first attended, other than a play school,
  • The birth certificate given by a corporation or a municipal authority or a panchayat,
  • A medical opinion from a duly constituted Medical Board.
हिन्दू पति या पत्नी तलाक कैसे लें ? तलाक लेने के आधार
कोई भी हिन्दू पति या पत्नी निम्न आधारो में से किसी पर तलाक ले सकते है-

  • जारता अर्थात पति या पत्नी से भिन्न किसी अन्य के साथ अनैतिक सम्बन्ध बनाना 
  • क्रूरता का व्यवहार करना
  • एक दूसरे की अनदेखी करना अर्थात अभित्याग 
  • किसी अन्य धर्म का अपना लेना अर्थात धर्म परिवर्तन कर लेना
  • पागल होना
  • कोढ़ रोग से पीड़ित होना
  • यौन रोग से पीड़ित होना
  • सन्यासी बन जाना 
  • सात वर्षो से लापता होना
  • न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के एक साल बीत जाने पर भी एक दूसरे के साथ न रह पाना
  • दांपत्य अधिकार के पुनर्स्थापन की डिक्री पारित होने के बाद भी दोनों में मेल मिलाप न हो पाना


केवल पत्नी को प्राप्त कुछ विशेष अधिकार जिन पर वह तलाक ले सकती है---

  • पति द्वारा किसी अन्य स्त्री से विवाह करना
  • पति द्वारा पत्नी के साथ अप्राकृतिक मैथुन करना
  • पत्नी के पक्ष में भरण पोषण की डिक्री पारित होने के एक वर्ष के बाद भी पति पत्नी के बीच कोई शारीरिक सम्बन्ध न बने हो
  • जबकि किसी स्त्री का विवाह 15 वर्ष की आयु में हुआ हो और उसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने से पहले ही अपने विवाह को खंडित कर दिया हो अर्थात वह अपने विवाह से संतुष्ट न हो चाहे पति पत्नी के बीच शारीरिक सम्बन्ध बने हो या न बने हो....... इसे यौवनवस्था का विकल्प कहते है...

तलाक के उपरोक्त आधार हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 में दिए हुए है
THE JUVENILE JUSTICE (CARE AND PROTECTION OF CHILDREN) ACT, 2015
THE JUVENILE JUSTICE (CARE AND PROTECTION OF CHILDREN) ACT, 2015 (नया एक्ट) में तीन प्रकार के offence परिभाषित किये गए हैं:

  1. SECTION 2(33): heinous offences - I.P.C. या other law में minimum punishment 7 साल या अधिक हो. उदाहरणस्वरूप धारा 376(1), 376(2) (rape), 376-A, 376-D, 376-E, 302 (murder), 304, 304-B(दहेज मृत्यु), 364-A, 397, 398 I.P.C.
  2. SECTION 2(45): petty offences - I.P.C. या other law में punishment 3 साल तक हो. उदाहरणस्वरूप धारा 379(चोरी), 411, 414, 323, 324, 341, 342, 304-A, 354-A(sexual harassment), 354-C, 354-D I.P.C.
  3. SECTION 2(54) serious offences - I.P.C. या other law में punishment 3 साल से 7 साल तक हो. उदाहरणस्वरूप धारा 325(grievous hurt), 354-B I.P.C.
मृत्युदण्ड प्राप्त स्त्री के कानूनी अधिकार
कोई मृत्युदण्ड पुष्टि हेतु उच्च न्यायालय द्वारा कम से कम दो न्यायाधीश द्वारा पारित और हस्ताक्षर किया जाना चाहिए.
मृत्युदण्ड प्राप्त स्त्री यदि गर्भवती पाई जाती है तो cr.p.c. की धारा 416 के अनुसार उच्च न्यायालय इसे आजीवन कारावास में बदलेगा.
What is Preliminary Assessment for Juvenile?
Preliminary Assesment for Juvenile :

# According to juvenile act 2015 (act 2 of 2016) a preliminary assesment of juvenile is required for heinous offence (offence with minimum punishment of 7 yr.)
# This assesment will be for the child of age 16 yr and above.
# Assesment will be to draw his mental and physical capacity to commit such offence.
# Juvenile board may take assistance of the expert for this.
# This assesment will be disposed of within a period of 3 months from his first production before J.J.B.
# Board may order after assesment that where the case wil be proceed, either before the Board for inquiry or before the Children's Court for trial.
# Order passed by the Board is appealable before the Court of Sessions u/s 101(2).
# relevant sections : 14(3), 15, 18(3), & 101(2).
3 तलाक क्या है ? तीन बार तलाक़ शब्द बोल दिए जाने पर किस प्रकार विवाह विच्छेद हो जाता है ?
मुस्लिम सम्प्रदाय में पति द्वारा पत्नी को तलाक़ दिए जाने के तरीके पर बहस छिड़ी हुई है। आइये जानते है कि मुस्लिम विधि में तीन बार तलाक़ शब्द बोल दिए जाने पर किस प्रकार विवाह विच्छेद हो जाता है।
इस प्रकार के तलाक़ को "तलाक़-उल-बिद्दत" या "तलाक़-उल-बैन" कहा जाता है। यह तलाक़ का निन्दित या पापमय रूप है। कानून की कठिनाइयों से बचने के लिए तलाक़ की यह अनियमित रीती omediya लोगो ने हिज्राँ की दूसरी शताब्दी में जारी की थी।। शाफ़ई और हनफ़ी विधियों में तलाक़ के इस रूप को मान्यता दी गयी है फिर भी वे उसे पापमय समझते है। शिया और मलिकी vidhishashtri तलाक़ के इस रूप को मान्यता नही देती। तलाक़-उल-बिद्दत या तलाक़ -उल-बैन पति द्वारा पत्नी को निम्नलिखित तरीके से दिया जा सकता है

  1. जब पत्नी तुंहर काल में हो (अर्थात जब उसको मासिक धर्म न हो) पति द्वारा किये गये तीन उच्चारण या एक ही sentence में "मैं तुम्हे तीन बार तलाक़ देता हू" या "मैं तुम्हे तलाक़ देता हू, मैं तुम्हे तलाक़ देता हू, मै तुम्हे तलाक़ देता हू"।।
  2. जब पत्नी तुंहर काल में हो (मासिक धर्म न हो रहा हो) पति द्वारा दिया गया एक ही उच्चारण जिससे अनिवर्तनीय (रद्द न हो सकने वाला irrevocable) विवाह विच्छेद करने का आशय(intention) clearly प्रकट होता हो, जैसे "मै तुम्हे irrevocable रूप से तलाक़ देता हू"।।।
  3. उपरोक्त स्तिथि में जैसे ही उच्चारण पूर्ण होता है वैसे ही तलाक़ भी पूर्ण हो जाता है।।
  4. मुस्लिम पति अपनी पत्नी को बिना वजह भी तलाक़ दे सकता है बस तलाक़ देने का आशय स्पष्ट होना चाहिए। तलाक़ लिखित या मौखिक हो सकता है। शिया और सुन्नी विधि की अपेक्षाएं अलग अलग है।।।
  5. तलाक़ के समय पत्नी का उपस्थित होना आवश्यक नही है।
  6. कुछ muslim jurists तलाक़-उल-बिद्दत को इस्लाम के खिलाफ मानते है।