देश और प्रदेश में जैसे ही चुनाव घोषित होते हैं या कोई वर्ग-संघर्ष अथवा प्रदर्शन या सरकार अथवा किसी घटना के विरूद्ध कोई मार्च आयोजित होता है तो भारतीय संविधान की दण्ड प्रक्रिया संहिता 107/116/151 का विधि व्यवस्था की स्थापना के लिए महत्व बढ़ जाता है। ऐसे में आक्रोशित जन सामान्य को नियंत्रित करने के लिए पुलिस इस कानून का सबसे ज्यादा प्रयोग करती है। देखा गया है कि पुलिस इन धाराओं में गिरफ्तारियां करके यह समझ लेती है कि उसका काम पूरा हो गया है और उसने समस्या पर काबू पा लिया है।
यह केवल एक मुगालता है और इस कानून के असावधानी पूर्वक प्रयोग करने पर समस्याएं बढ़ीं हैं और समस्या या आपसी संघर्ष को बढ़ावा ही मिला है। पुलिस इन धाराओं का बगैर सोचे समझे ही प्रयोग कर बैठती है जिसके दुष्परिणाम हत्याओं तक में तब्दील पाए गए हैं। गांवों में पुलिस का यह रोजमर्रा का हथियार है। पुलिस मामूली मन-मुटाव पर भी दोनो पक्षों के विरूद्ध इसका प्रयोग करती है जिससे गांव की शांति और सौहार्द जाता रहता है। कभी-कभी गांव के गांव इन धाराओं में मजिस्ट्रेट के सामने भेज दिए जाते हैं।
अपराध : किसी बात के लिए उकसाना
कोई भी व्यक्ति किसी काम को करने लिए दुष्प्रेरण करता है , जो -
- उस काम को करने के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है, या फिर
- उस काम को करने के लिए किसी षड्यंत्र में एक या एक से अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ सम्मिलित होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण में, कोई कार्य या अवैध चूक होती है;
- या उस काम के किए जाने में किसी कार्य या अवैध लोप (indirectly) द्वारा जानबूझ कर सहायता करता है ।
आईपीसी धारा 116 -
अपराध : कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण - यदि अपराध न किया जाए।
सजा : अपराध के लिए दीर्घतम अवधि की एक चौथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
जमानत : संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार होगी।
क्या है धारा 116 ?
जो भी कोई कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण करेगा यदि वह अपराध उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप न किया जाए और ऐसे दुष्प्रेरण के दण्ड के लिए कोई स्पष्ट प्रावधान इस संहिता में नहीं किया गया है, तो उसे उस अपराध के लिए उपबंधित किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक बढ़ायी जा सकती है, या उस अपराध के लिए उपबन्धित आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा;
यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है, जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो--और यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक हो, जिसका कर्तव्य ऐसे अपराध के किए जाने को निवारित करना हो, तो दुष्प्रेरक को उस अपराध के लिए उपबंधित किसी एक अवधि के लिए कारावास, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की दीर्घतम अवधि की आधी अवधि तक बढ़ायी जा सकती है, या उस अपराध के लिए उपबन्धित आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
लागू अपराध
1. कारावास से दण्डनीय अपराध का दुष्प्रेरण--यदि दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप अपराध न किया जाए।
सजा - अपराध के लिए दीर्घतम अवधि की एक चौथाई अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
जमानत, संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार होगी।
2. यदि दुष्प्रेरक या दुष्प्रेरित व्यक्ति ऐसा लोक सेवक है जिसका कर्तव्य अपराध निवारित करना हो।
सजा - दीर्घतम अवधि की आधी अवधि के लिए कारावास या आर्थिक दण्ड या दोनों।
जमानत, संज्ञान और अदालती कार्रवाई, किए गये अपराध अनुसार होगी।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
धारा 151 -
अपराध : 5 या 5 से अधिक व्यक्तियों का ऐसा जनसमूह जिससे सार्वजनिक शान्ति भंग होने का डर हो और उस जनसमूह को बिखर जाने का समादेश दे दिया गया हो उसके बाद भी जनसमूह का जानबूझकर शामिल होना या बने रहना
सजा : 6 माह का कारावास या जुर्माना या फिर दोनों
जमानत : यह एक जमानती, और संज्ञेय अपराध है और किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।
यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
सुबह टहल कर घर में आकर बैठा ही था कि पड़ोस के एक लड़के ने आकर कि सर मेरे भाई को पुलिस पकड़ कर ले गयी। पूछने पर कि क्यों? उसने कहा कि कल शाम एक किरायेदार से झगड़ा हो गया और हल्की सी मारपीट हो गयी। चोट कोई खास नहीं है, हल्का-फुल्का कहीं-कहीं खरोंच दोनो तरफ है। पूछने पर कि उधर का कोई थाने में है? उसने बताया कि जिससे झगड़ा हुआ था वह भी है।
मैने कहा कि घबराने की बात नहीं। पुलिस 107/116 की कार्यवाई कर रही है। कचहरी चलो, छुड़ा देते हैं। उसने कहा कि थाने से छुड़ा दीजिये। मैने कहा लगता है कि पुलिस 151 में गिरफ्तारी होना दिखाने जा रही है, इसलिए वह नहीं छोड़ेगी, कहना खाली जाएगा। इस पर उसने पूछा कि यह 107/116 एंव 151 क्या है।
इस पर उसे बताना पड़ा कि वास्तव में समाज जीवन को सुचारू रूप से निर्विघ्न संचालित करने के लिए कानून की आवश्यकता पड़ती है जिसे चुने हुए जनता के प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार बनाती है। किसी न किसी रूप में कानून हर आदमी से जुड़ा है। सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति भी कानून से ही सम्भव है। किसी न किसी रूप में कानून हर आदमी से जुड़ा है। सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति भी कानून से ही सम्भव है। सभी लोग शान्ति से रहकर सुव्यवस्थित जीवन बिताना चाहते है। जब कोई इसे विपरीत प्रभावित करता है और कानून को अपने हाथ में लेता है तो इससे परिशान्ति और लोक शान्ति लोक व्यवस्था प्रभावित होती है और अशान्ति और अव्यवस्था होती है, जिससे निबटने और सुव्यवस्थित करने के लिए तत्सम्बन्धी कानून खड़ा हो जाता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता में ऐसे मामलों के उपचार हेतु धारा 106 से लेकर 124 तक में विविध मामलों के सम्बन्ध में व्यवस्थाएं दी गयी है, जो अध्याय 8 में परिशान्ति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति शीर्षक से दी गयी है, जिसमें 107/116 धारा परिशान्ति के भंग होने की दशा में लागू होती है। धारा 107 के अनुसार (1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट एक्जेक्यूटिव मजिस्ट्रेट) को सूचना मिले कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशान्ति भंग करेगा या लोक प्रशान्ति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा संदोष कार्य करेगा, जिससे सम्भवत: परिशान्ति भंग हो जाएगी या लोकप्रशान्ति विक्षुब्ध हो जाएगी, तब वह (ऐसा मजिस्ट्रेट) यदि उसकी राय में कार्यवाई करने के लिए पर्याप्त आधार हो तो वह ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबन्धित रीति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह कारण दर्शित करें कि एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशान्ति कायम रखने के लिए उसे (प्रतिभुओं सहित या रहित) बन्धपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाय।
(2) इस धारा के अधीन कार्यवाई किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब की जा सकेगी, जब या तो उसे उक्त स्थान, जहां परिशान्ति भंग या विक्षोभ की आशंका हो, उसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर हो या ऐसी अधिकारिता से परे सम्भाव्यत, परिशान्ति भंग करेगा या लोक परिशान्ति विक्षुब्ध करेगा या पूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करेगा।
वास्तव में कानून व्यवस्था की दृष्टि से प्रत्येक स्थान की जिम्मेदारी उस स्थान पर अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट है अर्थात़ प्रत्येक जिला कानून व्यवस्था सुनिश्चत करने की द़ष्टि से क्षेत्रों में बंटा है और उसकी जिम्मेदारी एक मजिस्ट्रेट पर है, जो कार्यपालक मजिस्ट्रेट (एक्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट) कहलाता है, उसको परिशान्ति भंग करने वाले के विरूद्व कार्यवाई करने का अधिकार होता है।
उसकी क्षेत्रीय अधिकारिता के अन्तर्गत आने वाले थाने उसके अधीन होते है। उसकी अधिकारिता की पुलिस का दायित्व होता है कि वह अपने क्षेत्र के ऐसे मामलों की सूचना अपने यहां की विधिक प्रक्रिया से लिखा पढ़ी करके चालान भेजकर उक्त मजिस्ट्रेट को सूचित करे। पुलिस ही हर मामले में सूचित करे, यह आवश्यक नही। पीड़ित पक्षकार भी प्रार्थनापत्र, शपथपत्र सीधे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के यहां देकर सूचित कर सकता है। सूचना किसी भी तरीके से मिलने के पश्चात ऐसे मजिस्ट्रेट के लिए आवश्यकता होता है कि वह परिशान्ति भंग करने वाले के विरूद्व प्राप्त आख्या पर अपने स्वविवेक का प्रयोग कर कार्यवाई करने हेतु पहले धारा 111/112 के अनुसार स्पष्ट आदेश पारित करे जिसमें व्यक्ति से कारण दर्शित करने की अपेक्षा के साथ ही प्राप्त इत्तला का सारा (पक्षो ने क्या झगड़ा किया या उनमें क्या झगड़ा है) उस बंध पत्र की रकम, जो निष्पादित किया जाना है।
वह अवधि, जिसके लिए वह प्रवर्तन में रहना है और प्रतिभुओं की (यदि कोई हो) अपेक्षित संख्या, प्रकार और वर्ग बताते हुए लिखित आदेश देगा और यदि व्यक्ति उपस्थित है, जिसे 151 में गिरफतार कर लाया गया है या उपस्थित हुआ है तो 112 में उसे आदेश पढ़कर सुनाया जायेगा या यदि वह ऐसा चाहे तो उसका सार उसे समझाया जायगा।
यदि आदेश में उक्त बातें नहीं है तो फिर पूरी कार्यवाई दूषित और अवैध होगी। व्यक्ति उपस्थित नही है तब 113 के अन्तर्गत प्रक्रिया अपनायी जाएगी और उस व्यक्ति को नोटिस भेजी जाएगी, उसमें उक्त आदेश के बाहर की कोई बात नही होगी। आदेश या नोटिस प्रिंटेड फार्म या साइक्लोस्टाइल फार्म पर जारी किये जाने का भी कानून निषेध करता है। यदि ऐसा किया जाता है तो विवेक का सम्यक प्रयोग न किये जाने के कारण प्रक्रिया को दूषित और अविधिक कर देता है।
धारा 107/116 की कार्यवाई में नोटिस सुनाये जाने के उपरान्त समय रीति से 116 धारा के अन्तर्गत आगे सुनवाई होती है। यदि पक्षकार इस बीच शान्तिभंग करते है तो फिर मजिस्ट्रेट 116(3) बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश पारित कर जमानत दाखिल करने का आदेश कर सकता है। अत यह कार्यवाई दण्डात्मक न होकर निरोधात्मक होती है। जिसमें कोई कैद की सजा नहीं होती।
जहां तक इस कार्यवाई में धारा 151 के प्रयोग का प्रश्न है, वह अध्याय 11 में “पुलिस की निवारक शक्ति है, जिसमें संज्ञेय अपराधों के किये जाने से रोकने हेतु गिरफ्तार कर अपराध की गम्भीरता को रोकती है और पक्षों को मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करती है। 151 में गिरफ्तार के बाद पक्षों पर तत्क्षण 116 (3) में कार्यवाई का औचित्य नही होता, क्योंकि गिरफ्तार की हालत में फिर तुरन्त उपाय की कोई स्थित नही रह जाती। यही है 107/116, 151 धारा। इस धारा का सावधानीपूर्वक प्रयोग बहुत आवश्यक है। केवल दो पक्षों को न्यायालय भेजने से ही काम चलने वाला नही है। पुलिस ऐसा करके अपनी जिम्मेदारी से भी नही बच सकती है। क्योंकि बाद में कई परिवार इसी से बढ़ी वैमनस्यता के कारण एक दूसरे के खून के प्यासे होकर उजड़ते देखे गए हैं।
Vvvv nice
जवाब देंहटाएंअच्छा सुझाव है
जवाब देंहटाएंSir 107/116
जवाब देंहटाएंHamre uper laga hai ise kese hataya hate please tell me
Sar hamare upar laga hai107/116
जवाब देंहटाएंAur mujhe jhagde se koi matlab nahi hai vipach
Bhi ye kah raha hai ki aapse koi matlab nahi hai
Mai ek student hu
Mere sath v yesa hi hua hai mai v ek student hu. Pls contact me 9110043380
हटाएंMuj par dhara 151 lag chuki hai 2010 me kya mere sarkari nokari lag sakti hai
जवाब देंहटाएंGood quetion bro
जवाब देंहटाएंजब दो लोगो में झगडा होता होगा तो जाहिर कि गलती भी किसी ने की होगी,तो जो गलत नहीं है उसको कैसे बचाया जाए
जवाब देंहटाएंधारा 151 में गिरफ्तारी होने के बाद जमानत होने के बाद भी यदि झगड़ा हो तो फिर पुलिस क्या कार्यवाही करेगी/कर सकती है।
जवाब देंहटाएंभाई बढ़िया लिखा है।
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