मंगलवार, 10 जनवरी 2017

इनकम टैक्स return कैसे भरे ? how to file income tax return

31 मार्च को फाइनैंशल ईयर खत्म होने के बाद टैक्सेबल आमदनी वाले हर शख्स को इनकम टैक्स विभाग में एक फॉर्म भरकर देना होता है। इस फॉर्म में वह बताता है कि पिछले फाइनैंशल ईयर में उसे कुल कितनी आमदनी हुई और उसने उस आमदनी पर कितना टैक्स भरा। इसे इनकम टैक्स रिटर्न कहा जाता है।

Income Tax Return Kaise Bhare in Hindi – How to File Taxes 

इन्हें भरना है रिटर्न
  • – इनकम टैक्स रिटर्न उन सभी लोगों को भरना जरूरी है, जिनकी कुल सालाना आमदनी (आईटी ऐक्ट के मुताबिक मिलने वाले किसी भी तरह के डिडक्शन से पहले) टैक्सेबल है।
    • – जिन पुरुषों की सालाना आमदनी एक लाख 60 हजार रुपये से ज्यादा है, वे आईटी रिटर्न भरेंगे।
    • – जिन महिलाओं की सालाना आमदनी एक लाख 90 हजार रुपये से ज्यादा है, वे रिटर्न भरेंगी।
    • – जिन बुजुर्गों की सालाना आमदनी दो लाख 40 हजार रुपये से ज्यादा है, वे रिटर्न भरेंगे।
    • – जिन लोगों (पुरुषों, महिलाओं और बुजुर्गों) की सालाना आमदनी ऊपर दी गई सीमा से कम है, उन्हें आईटी रिटर्न भरने की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन अगर ऐसे लोगों का टीडीएस कट चुका है, तो उन्हें रिटर्न भरना चाहिए, जिससे वे रिफंड क्लेम कर सकें।
    • – अगर किसी के पास पैन है, लेकिन उसकी सालाना आमदनी ऊपर दी गई सीमा से कम है तो उसे भी रिटर्न नहीं भरना है।
पैन और रिटर्न
  • – रिटर्न भरने के लिए पैन होना जरूरी है।
  • – अगर सालाना आमदनी टैक्सेबल है तो पैन लेना अनिवार्य है। ऐसे लोग अगर अपने एम्प्लॉयर को पैन उपलब्ध नहीं कराते है तो एम्प्लॉयर उनका 20 फीसदी या उससे भी ज्यादा रेट पर टीडीएस काट सकता है।
  • – टैक्सेबल इनकम नहीं है तो पैन लेना अनिवार्य नहीं है, फिर भी कई तरह के वित्तीय लेन-देन और इंश्योरेंस के मामले में पैन की जरूरत होती है इसलिए बेहतर यही है कि पैन सभी को बनवा लेना चाहिए।
  • – इनकम टैक्सेबल होने पर अगर किसी के पास पैन नहीं है तो पैन न होने के लिए कोई सजा नहीं है, सजा इस बात के लिए हो सकती है कि पैन न होने के चलते आप रिटर्न फाइल नहीं करा पाए या आपने अपनी आमदनी को छिपाया।
  • – जिन लोगों का टीडीएस उनकी कंपनी द्वारा काटा जा चुका है और उन पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती, वे 31 मार्च 2010 तक भी अपना रिटर्न जमा कर सकते हैं।
  • – ऐसे लोग अगर 31 मार्च 2011 तक अपना रिटर्न जमा नहीं करा पाते, तो उसके बाद उन पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है।
रिटर्न भरने से पहले अपने सारे बैंक खातों की पूरे साल की स्टेटमेंट देखें। किस-किस मद में पैसा गया और किस-किस सोर्स से पैसा आया, उसे आइटम वाइज लिखते जाएं। इससे आपको सही-सही पता चल जाएगा कि साल में आपने इनवेस्ट कहां कितना किया और आपको आमदनी कहां से कितनी हुई। इससे आप ब्याज आदि से हुई आमदनी को याद कर पाएंगे। रिटर्न भरने में यह आपके काम आएगी।
लास्ट डेट
  • सैलरीड लोगों के लिए : 31 जुलाई
  • बिजनेस वाले लोगों के लिए, अगर वे अपनी आमदनी की ऑडिटिंग नहीं कराते : 31 जुलाई
  • सेल्फ एम्प्लॉइड लोगों के लिए, अगर ऑडिटिंग नहीं कराते : 31 जुलाई
  • ऐसे सभी लोगों, फर्मों या कंपनियों के लिए जो अपनी आमदनी की ऑडिटिंग कराते हैं : 30 सितंबर
जिन लोगों का टीडीएस उनकी कंपनी द्वारा काटा जा चुका है और उन पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती, वे 31 मार्च 2011 तक भी अपना रिटर्न जमा कर सकते हैं, लेकिन ऐसे लोग अगर 31 मार्च 2011 तक अपना रिटर्न जमा नहीं करा पाते हैं, तो उन पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है।
कौन सा फॉर्म किसके लिए
  • आईटीआर 1
    उन लोगों को भरना है, जिन्हें सैलरी, पेंशन और ब्याज से आमदनी हुई। जिन लोगों के पास एक मकान है और उन्होंने हाउसिंग लोन ले रखा है, उन्हें भी यही फॉर्म भरना है।
  • आईटीआर 2
    अगर आपको सैलरी, पेंशन और ब्याज से हुई आमदनी के अलावा एक से ज्यादा प्रॉपर्टी से आने वाले किराये, कैपिटल गेंस, डिविडेंड से भी किसी तरह की कोई आमदनी हुई है तो आपको आईटीआर 2 भरना होगा। एचयूएफ के लिए भी यही फॉर्म है।
  • आईटीआर 3
    अगर आप किसी फर्म में पाटर्नर हैं तो आईटीआर 3 भरें।
  • आईटीआर 4
    आईटीआर 4 उन लोगों को भरना होता है, जिन्हें किसी बिजनेस, फर्म आदि से इनकम होती है। इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोगों जैसे वकील, डॉक्टर और चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि को भी आईटीआर 4 फॉर्म ही भरना होता है।
अगर आप सैलरीड हैं तो आपको आपकी कंपनी ने फॉर्म 16 दिया होगा। फॉर्म 16 में आपकी कुल आमदनी, टैक्स कटौती और बचत का ब्यौरा दिया होगा। सैलरीड क्लास के लोगों को इस फॉर्म की मदद से आईटी रिटर्न भरना है। याद रहे, रिटर्न के साथ कोई भी डॉक्यूमेंट नहीं लगाना है। फॉर्म 16 भी नहीं। सैलरी के अलावा अगर आमदनी का कोई और भी स्त्रोत है जैसे ब्याज से होने वाली आमदनी आदि तो उसका जिक्र भी रिटर्न में जरूर करें।
जमा कहां करें
  • सैलरीड क्लास के लोग अपना भरा हुआ रिटर्न फॉर्म मयूर भवन, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में अपने असेसमेंट ऑफिसर के पास जमा करा सकते हैं। असेसमेंट ऑफिसर के बारे में जानने के लिए इनकम टैक्स की वेबसाइट www.incometaxindia.gov.in पर जाएं और पैन पर क्लिक करें। इसके बाद ‘नो योर एओ’ पर क्लिक करें। अब आपसे आपका पैन मांगा जाएगा। पैन भरने के बाद एंटर दबाएं और फिर पेज को लेफ्ट की तरफ खिसकाएं। अब अपने आईटीओ वॉर्ड से संबंधित पूरी जानकारी आपके सामने होगी।
रिफंड
  • अगर टीडीएस कट जाने के बाद आपने टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट किया है तो उसे इनकम टैक्स विभाग से रिफंड करा सकते हैं। रिटर्न फाइल करने के कुछ महीने के अंदर आपको रिफंड मिल जाएगा। यह आपके बैंक अकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाता है। अगर रिटर्न भरते वक्त आपको पता चलता है कि आपके ऊपर टीडीएस के अलावा भी टैक्स की देनदारी बन रही है तो उस टैक्स को आपको नैशनलाइज्ड बैंकों की तय शाखाओं में चालान भरकर जमा करा देना चाहिए।
कब तक रखें रेकॉर्ड
  • इनकम टैक्स एक्ट के मुताबिक वर्तमान करंट फाइनैंशल ईयर से छह साल पहले तक के मामलों में कानूनी धरपकड़ हो सकती है इसलिए रिटर्न आदि का छह साल तक का रेकॉर्ड आपके पास सुरक्षित होना चाहिए।
भरने के तरीके
  • इनकम टैक्स रिटर्न अपने फॉर्म 16 की मदद से आप खुद भरकर जमा करा सकते हैं। फॉर्म 16 की मदद से रिटर्न खुद कैसे भरें, इसका तरीका दिया जा रहा है। इसके अलावा, रिटर्न भरने के ये तरीके भी हैं :
1. टीआरपी की मदद से 
इस लिंक पर जाएं http://www.rpscheme.com/trp/index.jsp
‘लोकेट योर नीयरेस्ट टीआरपी’ क्लिक करें।
इसके बाद सर्च टीआरपी में जाने के बाद अपना प्रदेश और जिले का नाम भर दें। आपके क्षेत्र के टीआरपी के नाम, पते और फोन नंबर आपको मिल जाएंगे। इनसे संपर्क करें। समय-समय पर इनकम टैक्स विभाग टीआरपी के बारे में अखबारों में भी सूचना देता रहता है। टोल फ्री नंबर 1800-10-23738 पर कॉल करके भी टीआरपी से संबंधित सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं। यह नंबर मोबाइल फोन से भी मिला सकते हैं। यह लाइन सोमवार से शनिवार तक सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती है।
कोई भी टीआरपी देश में कहीं भी मौजूद आदमी का रिटर्न भर सकता है। टीआरपी को पहचानने के लिए उनका आईडी कार्ड या सर्टिफिकेट देखें।
टीआरपी को अपने फॉर्म 16 की फोटोस्टैट दें, ओरिजनल डॉक्यूमेंट न दें। इसकी मदद से वह रिटर्न भरेगा और जमा करेगा। रिटर्न जमा करने के बाद टीआरपी आपको उसकी रसीद देगा।
रिटर्न भरने में कोई गड़बड़ी होती है तो इसके लिए टीआरपी जिम्मेदार होगा।
खर्च कितना: रिटर्न भरकर जमा करने का काम टीआरपी बिना किसी फीस के करते हैं, लेकिन फिर भी वे अधिकतम 250 रुपये तक चार्ज कर सकते हैं।
2. ई-रिटर्न
ई-रिटर्न भरने के लिए टैक्स से संबंधित कई वेबसाइट्स सेवाएं दे रही हैं, लेकिन ये साइट्स आपसे पैसे चार्ज करती हैं। अगर फ्री में ई- रिटर्न भरना चाहते हैं तो आपको इनकम टैक्स विभाग की साइट से ई-रिटर्न भरना चाहिए। इसके लिए नीचे दिए गए स्टेप को फॉलो करें :
  • इनकम टैक्स विभाग की साइट www.incometaxindia.gov.in पर जाएं।
  • यहां ‘ई फाइल इनकम टैक्स रिटर्न’ पर क्लिक करें।
  • आपको रिटर्न का जो फॉर्म भरना है, उस फॉर्म को डाउनलोड करें।
  • इस रिटर्न फॉर्म को ऑफलाइन भर लें और फिर ‘जेनरेट एक्सएमएल फाइल’ पर क्लिक करके इसका एक्सएएमएल वर्जन तैयार कर लें।
  • अब इनकम टैक्स की साइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन कराएं और ई-मेल अकाउंट व पासवर्ड हासिल करें।
  • इसकी मदद से लॉग-इन करें और ‘समिट रिटर्न’ पर क्लिक कर दें।
  • इसके बाद रिटर्न की एक्सएमएल फाइल को ब्राउज करके उसे अपलोड कर दें।
  • फाइल अपलोड हो जाने के बाद अकनॉलिजमेंट फॉर्म आएगा।
  • अगर आपके पास डिजिटल साइन हैं, तो डिजिटल साइन दे दीजिए। रिटर्न का प्रॉसेस यहीं पूरा हो गया।
  • अगर डिजिटल साइन नहीं हैं, तो इस अकनॉलेजमेंट फॉर्म पर अपने साइन करें और 120 दिनों के अंदर इसे साधारण पोस्ट से इस पते पर भजे दें :
  • आईटी विभाग, सीपीसी, पो. बॉ. 1, इले. सिटी पोस्ट ऑफिस, बेंगलुरु।
  • इसके बाद विभाग की तरफ से आपके पास इस बात का अकनॉलिजमेंट ई-मेल से आएगा कि आपका रिटर्न भरने का काम सफलतापूर्वक पूरा हुआ।
  • खर्च कितना: अगर इनकम टैक्स की साइट से भर रहे हैं तो कोई खर्च नहीं है। किसी और साइट से भरते हैं तो 100 से 750 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं।
    कैसे बनते हैं डिजिटल साइन: टीसीएस, एमटीएनएल और सिफी जैसी कई अथॉरिटी हैं, जहां से आप अपना डिजिटल सिग्नेचर बनवा सकते हैं। इन कंपनियों ने जगह जगह अपनी सब सर्टिफाइंग अथॉरिटी बना रखी हैं, जिनमें सीधे जाकर डिजिटल सिग्नेचर के लिए अप्लाई करना होता है। एक सामान्य सा फॉर्म भरा जाता है और एक हजार रुपये की फीस जमा कराई जाती है। इसके बाद पेन ड्राइव में आपको आपके डिजिटल सिग्नेचर दे दिए जाते हैं और उन्हें यूज करने के लिए आपको पासवर्ड दे दिया जाता है। ये सिग्नेचर केवल दो साल तक वैलिड होते हैं।
    वैसे, बेहतर यही है कि डिजिटल सिग्नेचर के चक्कर में न पड़ें और ऑनलाइन फॉर्म भरकर उसका अकनॉलिजमेंट साइन करके बेंगलुरु भेज दें।
    कैसे निकालें टैक्सेबल इनकम
    टैक्स कैलकुलेट करने के लिए पहले आपको अपनी टैक्सेबल इनकम निकालनी होगी। यह वह इनकम है जिस पर टैक्स कैलकुलेट होगा। इसमें 1 अप्रैल 2009 से 31 मार्च 2010 के बीच सभी स्त्रोतों से मिली आमदनी जोड़ी जाएगी। हां, कुछ आइटम्स छोड़ दिए जाते हैं और कुछ को घटाया भी जाता है। आइए, जानते हैं कि आमदनी के कौन-कौन से आइटम टैक्सेबल आमदनी में जुड़ेंगे और कौन-कौन से नहीं :
    1. 1 अप्रैल 2009 से 31 मार्च 2010 तक सैलरी
    सैलरी पानेवालों को उनके एम्प्लॉयर द्वारा मई-जून में एक सर्टिफिकेट (फॉर्म 16) दिया जाता है, जिसमें सैलरी, भत्तों और काटे गए टैक्स यानी टीडीएस का ब्यौरा होता है। ग्रॉस सैलरी में एम्प्लॉयर द्वारा दिए जा रहे तमाम भत्तों को भी शामिल किया जाता है। इन भत्तों पर टैक्स लगता है, लेकिन कुछ शर्तों के साथ इनमें छूट और डिडक्शन ली जा सकती है।
सैलरी के मेन आइटम्स
  • – बेसिक और डीए
    • साल भर में आपको जो बेसिक सैलरी और डीए मिलता है, पूरा टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।
  •  स्पेशल पे अलाउंस
    • यह भी टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।
  •  हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए)
    • अगर आप मकान के किराये की रसीदें दफ्तर में जमा करा दें तो एचआरए को खर्च मान लिया जाता है और उसे टैक्सेबल इनकम में नहीं जोड़ा जाता। अगर आप अपने घर में रह रहे हैं या ऐसे घर में हैं, जहां आपको रेंट नहीं देना होता, तो एचआरए आपकी टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाएगा यानी उस पर टैक्स लगेगा। अगर आपको दफ्तर से एचआरए मिलता है और जिस मकान में आप रह रहे हैं, वह आपके जीवनसाथी या माता-पिता के नाम है तो आप उन्हें साल भर चेक के जरिए किराया देकर टैक्स में छूट पा सकते हैं। छूट पाने के लिए किराये की रसीदें अपने दफ्तर में जमा कराना जरूरी है। अगर किराया दे रहे हैं तो नीचे दी गई रकमों में से जो सबसे कम होगी, उस रकम पर आपको टैक्स नहीं देना होगा :
  • – साल भर में दफ्तर से मिला कुल एचआरए।
  • – चुकाए गए सालाना किराये की रकम में से सालाना बेसिक सैलरी के 10 फीसदी हिस्से को घटाने पर निकली रकम।
  • – अगर दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में हैं तो बेसिक सैलरी का 50 फीसदी और दूसरे शहरों में हैं तो बेसिक सैलरी का 40 फीसदी।
  • – ट्रांसपोर्टेशन अलाउंस
    • यह अगर आपको हर महीने 800 रुपये तक मिल रहा है, तो वह टैक्सेबल नहीं होगा। 800 रुपये से ज्यादा मिल रहा है तो बाकी रकम पर टैक्स लगेगा।
  • – मेडिकल रीइंबर्समेंट
    • यह अगर साल भर में 15 हजार रुपये तक मिल रहा है तो डॉक्टरों और दवाइयों के खर्च की रसीदें दफ्तर में जमा कराकर आप उतनी रकम पर टैक्स बचा सकते हैं। अगर 15 हजार रुपये से ज्यादा मिले तो बाकी रकम आपकी टैक्सेबल आमदनी में जुड़ेगी और उस पर टैक्स देना होगा।
  • – एलटीए (लीव ट्रैवल अलाउंस)
    • यह रकम रसीद देकर क्लेम की जा रही है तो टैक्स नहीं लगेगा। चार साल में सिर्फ दो बार ही रसीद देने पर टैक्स में छूट मिलती है। इन चार साल का एक ब्लॉक होता है – वर्तमान में 2010-13 (1 जनवरी 2010 से लेकर 31 दिसंबर 2013 तक) ब्लॉक चल रहा है।
  • – बोनस/वैरिएबल पे
    • यह पूरा का पूरा टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।
2. बिजनेस और प्रफेशन
बिजनेस या प्रफेशन में जो भी आमदनी हुई है, उसे टैक्सेबल इनकम में जोड़ेंगे।
3. जमीन-जायदाद से होने वाली इनकम
  • – इसमें मकान या दुकान से आने वाला किराया शामिल होता है। अगर प्रॉपर्टी में खुद रह रहे हैं, तो उससे होने वाली आमदनी निल मानी जाएगी।
  • – अगर इस प्रॉपर्टी को खरीदने के लिए लोन लिया गया है तो ब्याज के मद में दी जा रही रकम को टैक्सेबल इनकम में से कम किया जाएगा, लेकिन इस मद की ऊपरी सीमा डेढ़ लाख रुपये है।
  • – अगर घर को किराये पर दिया गया है तो पूरे साल का कुल किराया पता करें, इसमें से प्रॉपर्टी टैक्स घटा दें। इस अमाउंट का 30 फीसदी मेंटेनेंस का कम कर दें और फिर इस अमाउंट में से लोन चुकाने में दिए गए ब्याज की रकम को घटा दें। जो बचा, वह हाउस प्रॉपटीर् से मिली आमदनी मानी जाएगी।
4. कैपिटल गेंस
  • – किसी संपत्ति या शेयरों को बेचने से होने वाली इनकम कैपिटल गेंस होती है। यह दो तरह का होता है : लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस।
  • – अगर किसी संपत्ति को उसके खरीदे जाने के तीन साल के भीतर बेचा जाता है, तो उससे होने वाला फायदा शॉर्ट टर्म गेंस होगा और अगर तीन साल के बाद बेचा जाता है तो उसे लॉन्ग टर्म गेंस कहेंगे।
  • – इसी तरह अगर शेयरों को खरीदे जाने के 12 महीने के अंदर बेच दिए जाते हैं, तो होने वाला लाभ शॉर्ट टर्म होगा और अगर 12 महीने के बाद बेचा जाता है तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस में रखेंगे।
  • – शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर टैक्स देना होता है इसलिए उसे टैक्सेबल इनकम में जोड़ेंगे। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर कोई टैक्स नहीं लगता, इसलिए इसे नहीं जोड़ेंगे।
5. अन्य स्त्रोतों से होने वाली आमदनी
ऊपर के अलावा बाकी सारी छिटपुट आमदनी इसमें जोड़ें। निमन् सभी स्त्रोतों से मिली आमदनी को टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाएगा :
  • – सेविंग्स बैंक अकाउंट से मिला ब्याज
  • – पोस्ट ऑफिस सेविंग्स जैसे एनएससी, किसान विकास पत्र, इंदिरा विकास पत्र, एमआईएस आदि से मिला ब्याज
  • – किसी को दिए गए उधार से मिला ब्याज
  • – कंपनी डिपॉजिट्स से मिला ब्याज
  • – डिबेंचर/बॉन्ड्स से मिला ब्याज
  • – लॉटरी से हुई आमदनी
  • – सरकारी सिक्युरिटीज से मिला ब्याज
किस-किस इनकम पर नहीं लगेगा टैक्स
नीचे दी गई इनकम पर टैक्स नहीं लगता और इसकी कोई ऊपरी सीमा भी नहीं है :
  • – पीपीएफ/जीपीएफ/ईपीएफ पर मिला ब्याज
  • – जीओआई टैक्स फ्री बॉन्ड्स पर मिला ब्याज
  • – शेयर और म्यूचुअल फंड्स पर मिला डिविडेंड
  • – पोस्ट ऑफिस में खुले किसी सेविंग्स अकाउंट पर मिला ब्याज
  • – शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड्स बेचने से हुआ लॉर्न्ग टर्म कैपिटल गेंस (बशतेर् ट्रांजैक्शन पर लगने वाला सिक्युरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स पे हो चुका हो)।
  • – कुछ खास रिश्तेदारों से लिए गए गिफ्ट। अगर गैर-रिश्तेदारों से ले रहे हैं तो 50 हजार रुपये से कम का गिफ्ट। गैर-रिश्तेदारों से 50 हजार रुपये से ज्यादा का गिफ्ट ले रहे हैं तो पूरी अमाउंट पर टैक्स देना होगा।
  • – खेती से हुई आमदनी
  • – विरासत में मिली जायदाद पर टैक्स नहीं लगेगा, लेकिन अगर उससे किराया मिल रहा है तो उस किराये पर टैक्स लगेगा।
कैसे करें टैक्स कैलकुलेशन
1. टैक्स निकालने के लिए सबसे पहले अपनी ग्रॉस टोटल इनकम पता करें। इसमें 1 अप्रैल 2009 से 31 मार्च 2010 तक की कुल सैलरी, हाउस प्रॉपर्टी से हुई आमदनी, बिजनेस या प्रफेशन से हुई आमदनी, कैपिटल गेंस और अन्य स्त्रोतों से आमदनी को जोड़ा जाता है।
2. ग्रॉस टोटल इनकम निकालने के बाद शुरू होता है डिडक्शन का काम। चैप्टर 6-ए के अंतर्गत धारा 80 सी से लेकर 80 यू के तहत जो भी रकमें हों, उन्हें ग्रॉस टोटल इनकम में से घटाया जाता है। इस तरह हमें मिलती है नेट टैक्सेबल इनकम।
3. नेट टैक्सेबल इनकम पर टेबल में दिए गए स्लैब के आधार पर टैक्स निकाल लिया जाता है और हमें टोटल टैक्स मिल जाता है।
डिडक्शन के आइटम्स
80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी
इनके तहत नीचे दिए गए आइटम्स में किए गए इनवेस्टमेंट पर डिडक्शन मिलता है, लेकिन इसकी सीमा एक लाख रुपये है। एक लाख से ऊपर का इनवेस्टमेंट हुआ है तो भी डिडक्शन एक लाख का ही मिलेगा। नीचे दिए आइटम्स की रकमों को सैलरी में से घटा सकते हैं।
  • – ट्यूशन फीस :
  • – ईपीएफ या जीपीएफ
  • – पीपीएफ
  • – जीवन बीमा पॉलिसी
  • – हाउसिंग लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर जा रही रकम
  • – एनएससी
  • – पांच साल या ज्यादा की एफडी
  • – इंश्योरेंस कंपनियों के पेंशन प्लान
  • – सीनियर सिटिजंस सेविंग स्कीम
  • – म्यूचुअल फंड
  • – यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (यूलिप)
  • – इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ईएलएसएस)
  • – बैंकों व दूसरी संस्थाओं के इंफ्रास्ट्रक्चर बॉण्ड
नीचे दिए गए आइटमों में भी डिडक्शन मिलता है, जो एक लाख की सीमा से अलग होता है।
  • – हाउसिंग लोन रीपेमेंट में ब्याज की रकम (सेक्शन 24)
  • – मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम (80 डी)
  • – हायर एजुकेशन के लिए लिए गए लोन में केवल ब्याज की रकम (80 ई)
  • – विकलांग आश्रितों के इलाज पर खर्च (80 डीडी)
  • – मेडिकल एक्सपैंस (80 डीडीबी)
फॉर्म भरते वक्त ध्यान देने वाली कुछ बातें
  • – पसर्नल इंफर्मेशन चाहे जैसे भी लेटर्स में भरें, सिस्टम अपने आप उसे कैप्स में ही लेगा।
  • – इसमें रेड साइन वाली सूचनाओं को देना अनिवार्य है। इसके अलावा सूचनाएं आप छोड़ भी सकते हैं।
  • – ऑनलाइन फॉर्म भर रहे हैं तो ईमेल आईडी आपको देना ही होगा। मैन्युअल फॉर्म में इसे छोड़ सकते हैं।
  • – अगर इस साल पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो फाइलिंग स्टेटस के कॉलम में आपको ओरिजनल देना है।
  • – रिटर्न फाइल अंडर सेक्शन वाले कॉलम में 139 (1) भर दें, अगर आप इस साल ड्यू डेट से पहले रिटर्न भर रहे हैं।
  • – हाउस प्रॉपर्टी का लॉस अगर एम्प्लॉयर को नहीं बताया है तो कॉलम 2 में भर दें। इसका फायदा आपको मिल जाएगा। जिन लोगों ने होम लोन ले रखा है, वे पूरे साल में होम लोन के ब्याज के तौर पर दी जा रही रकम को यहां नेगेटिव साइन के साथ भरेंगे। इसकी लिमिट डेढ़ लाख रुपये है। प्रॉपर्टी रेंट पर है तो कितना भी लॉस दिखा सकते हैं। जैसे रेंट एक लाख रुपये आता है और ब्याज के तौर पर आप चार लाख देते हैं तो आप यहां तीन लाख रुपये दिखा सकते हैं।
  • – अदर सोर्स से होने वाली इनकम को कॉलम तीन में दिखाना है। सेविंग अकाउंट से मिला ब्याज, एफडीआर, पोस्ट ऑफिस एमआईएस, एनएससी एक्रूड ब्याज, कमिशन आदि से मिली रकम इस कॉलम में दिखानी चाहिए।
  • – अब शुरू होंगे डिडक्शन के कॉलम। 80 सी से संबंधित जो चीजें आप ऑफिस में डिक्लेयर कर चुके हैं, वे तो फॉर्म 16 से आप लिख ही देंगे, लेकिन अगर कुछ ऐसा इनवेस्ट किया है जो ऑफिस में नहीं बता सके तो उस रकम को यहां दिखाएं। इससे आपको टैक्स में छूट मिल जाएगी।
  • – पहली शीट पर कॉलम नंबर 7 में टोटल इनकम भर देने के बाद दूसरी शीट पर चले जाएं और यहां फॉर्म 16 के दूसरे पेज से टीडीएस डिटेल्स भरें।
  • – रिफंड भरने के बाद पहली शीट पर राइट हैंड पर जाकर कैलकुलेट टैक्स पर क्लिक कर दें। पहली शीट पर जो कॉलम बच गए थे, वे अब अपने आप भर जाएंगे। रिफंड भरते वक्त ध्यान रखें कि अपना बैंक अकाउंट और एमआईसीआर कोड दें। इससे रिफंड सीधे आपके अकाउंट में क्रेडिट हो जाएगा।
  • – जिन लोगों को फॉर्म 280 की मदद से टैक्स जमा कराना है वे ध्यान रखें कि कैश जमा कराने पर बैंक उन्हें हाथोंहाथ रसीद देगा और चेक से जमा कराने पर तब, जब चेक क्लियर हो जाएगा। रसीद पर सुनिश्चित कर लें कि बैंक वालों ने 7 डिजिट का बीएसआर नंबर, डेट और सीरियल नंबर डाल दिए हैं।
  • – अगर कॉलम 19 में जीरो फिगर आती है तो इसका मतलब है कि आपके ऊपर कोई टैक्स लायबिलिटी नहीं है।
  • – अंत में वैलिडेट करें। इससे इस बात का संकेत मिल जाएगा कि आपका फॉर्म ठीक भरा गया है।
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