किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) संशोधन विधेयक 2015 पारित
जघन्य अपराधों के आरोपी 16 से 18 साल के किशोरवय अपराधियों पर वयस्कों के लिए बने कानूनों के तहत मुकदमा चलाने वाले कानून को संसद की स्वीकृति मिल गई है। 22 दिसंबर को राज्यसभा ने भी इसे पारित कर दिया, जबकि लोकसभा में किशोर न्याय (संशोधन) विधेयक 7 मई को पारित हुआ था. वर्तमान कानून के तहत नाबालिग को ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक के लिए सुधार गृह में रखा जा सकता था. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाने पर जघन्य अपराध करने वाले 16-18 आयु वर्ग के किशोरों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकेगा।
प्रमुख प्रावधान
नए विधेयक में छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित और श्रेणीबद्ध किया गया है।
इसके साथ ही हर श्रेणी के अपराध के लिए विभेदित प्रक्रियाओं को भी परिभाषित किया गया है।
इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किये गये हैं जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है। इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं।
नए कानून में यह व्यवस्था है कि ऐसे मामले में जहां जघन्य अपराध में 16 से 18 आयु वर्ग का व्यक्ति शामिल रहा है तो उसका अध्ययन किशोर न्याय बोर्ड करेगा और यह पता लगाएगा कि क्या अपराध एक ‘बालक’ के तौर पर किया गया है या ‘वयस्क’ के तौर पर।
यह आकलन एक ऐसे बोर्ड द्वारा किया जाएगा जिसमें मनोचिकित्सक और समाज विशेषज्ञ होंगे.
इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अगर अपराधी ने बतौर बालक अपराध किया है तो किशोर के अधिकारों का उचित संरक्षण हो। ऐसे में मामले की सुनवाई आकलन के आधार पर एक किशोर अपराधी या एक वयस्क के तौर पर होगी।
इसके अलावा इसमें किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन सहित कई प्रावधान किये गये हैं।
अभी तक बाल सुधार गृहों की निगरानी और रखरखाव का मुआयना करने का जिम्मा केवल राज्य सरकारों पर था, लेकिन नए कानून में बाल सुधार के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ एनजीओ को मुआयने के काम में जोड़ा गया है।
वरिष्ठ महिला वकीलों द्वारा इन सुधार गृहों का सामाजिक ऑडिट भी किया जाएगा।
इस कानून के प्रावधान पिछली तारीख से प्रभावी नहीं होंगे और इस वजह से निर्भया मामले के नाबालिग दोषी पर लागू नहीं होंगे।
किसी भी नाबालिग दोषी को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा. किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधिक घटना में किसी किशोर अपराधी के लिप्त होने के पीछे उसकी मंशा क्या थी।
ऐसे नाबालिग अपराधी को उच्च अदालतों में अपील करने का अधिकार होगा.
नए कानून में अनाथों, बेसहारा और समर्पण करने वाले बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को भी दुरूस्त करने का प्रस्ताव है। इसमें बाल दत्तक संसाधन अधिकरण (सीएआरए) के लिए सांविधिक दर्जा तय किया गया है।
संस्थागत और गैर-संस्थागत बच्चों के लिए सामाजिक एकीकरण उपाय और कई पुनर्वास उपायों का भी प्रस्ताव किया गया है।
इसमें पूरी तरह नए उपाय के तौर पर प्रायोजित और देखभाल की भी व्यवस्था की गई है।
बच्चों की देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराने वाले सभी संस्थानों के लिए अनिवार्य पंजीकरण का भी प्रस्ताव है।
गैरकानूनी गोद लेने, बाल देखभाल संस्थानों में कठोर सजा, आतंकवादी समूहों द्वारा बच्चों का इस्तेमाल और विकलांग बच्चों के खिलाफ अपराधों जैसे नए अपराधों को भी शामिल किया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण संशोधन इसके उपबंध 7 को हटाना है जो किसी व्यक्ति द्वारा जघन्य अपराध किए जाने के लिए 21 साल से अधिक उम्र होने पर ही उसके खिलाफ वयस्क की तरह सुनवाई किए जाने से संबंधित है।
जघन्य अपराधों के आरोपी 16 से 18 साल के किशोरवय अपराधियों पर वयस्कों के लिए बने कानूनों के तहत मुकदमा चलाने वाले कानून को संसद की स्वीकृति मिल गई है। 22 दिसंबर को राज्यसभा ने भी इसे पारित कर दिया, जबकि लोकसभा में किशोर न्याय (संशोधन) विधेयक 7 मई को पारित हुआ था. वर्तमान कानून के तहत नाबालिग को ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक के लिए सुधार गृह में रखा जा सकता था. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन जाने पर जघन्य अपराध करने वाले 16-18 आयु वर्ग के किशोरों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाया जा सकेगा।
प्रमुख प्रावधान
नए विधेयक में छोटे, गंभीर और जघन्य अपराधों को स्पष्ट तौर पर परिभाषित और श्रेणीबद्ध किया गया है।
इसके साथ ही हर श्रेणी के अपराध के लिए विभेदित प्रक्रियाओं को भी परिभाषित किया गया है।
इस कानून के तहत जघन्य अपराधों में वे ही अपराध शामिल किये गये हैं जिन्हें भारतीय दंड विधान संगीन अपराध मानता है। इनमें हत्या, बलात्कार, फिरौती के लिए अपहरण, तेजाब हमला आदि अपराध शामिल हैं।
नए कानून में यह व्यवस्था है कि ऐसे मामले में जहां जघन्य अपराध में 16 से 18 आयु वर्ग का व्यक्ति शामिल रहा है तो उसका अध्ययन किशोर न्याय बोर्ड करेगा और यह पता लगाएगा कि क्या अपराध एक ‘बालक’ के तौर पर किया गया है या ‘वयस्क’ के तौर पर।
यह आकलन एक ऐसे बोर्ड द्वारा किया जाएगा जिसमें मनोचिकित्सक और समाज विशेषज्ञ होंगे.
इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि अगर अपराधी ने बतौर बालक अपराध किया है तो किशोर के अधिकारों का उचित संरक्षण हो। ऐसे में मामले की सुनवाई आकलन के आधार पर एक किशोर अपराधी या एक वयस्क के तौर पर होगी।
इसके अलावा इसमें किशोर न्याय बोर्ड के पुनर्गठन सहित कई प्रावधान किये गये हैं।
अभी तक बाल सुधार गृहों की निगरानी और रखरखाव का मुआयना करने का जिम्मा केवल राज्य सरकारों पर था, लेकिन नए कानून में बाल सुधार के क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञ एनजीओ को मुआयने के काम में जोड़ा गया है।
वरिष्ठ महिला वकीलों द्वारा इन सुधार गृहों का सामाजिक ऑडिट भी किया जाएगा।
इस कानून के प्रावधान पिछली तारीख से प्रभावी नहीं होंगे और इस वजह से निर्भया मामले के नाबालिग दोषी पर लागू नहीं होंगे।
किसी भी नाबालिग दोषी को सीधे जेल नहीं भेजा जाएगा. किशोर न्याय बोर्ड यह फैसला करेगा कि बलात्कार, हत्या जैसे गंभीर अपराधिक घटना में किसी किशोर अपराधी के लिप्त होने के पीछे उसकी मंशा क्या थी।
ऐसे नाबालिग अपराधी को उच्च अदालतों में अपील करने का अधिकार होगा.
नए कानून में अनाथों, बेसहारा और समर्पण करने वाले बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को भी दुरूस्त करने का प्रस्ताव है। इसमें बाल दत्तक संसाधन अधिकरण (सीएआरए) के लिए सांविधिक दर्जा तय किया गया है।
संस्थागत और गैर-संस्थागत बच्चों के लिए सामाजिक एकीकरण उपाय और कई पुनर्वास उपायों का भी प्रस्ताव किया गया है।
इसमें पूरी तरह नए उपाय के तौर पर प्रायोजित और देखभाल की भी व्यवस्था की गई है।
बच्चों की देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराने वाले सभी संस्थानों के लिए अनिवार्य पंजीकरण का भी प्रस्ताव है।
गैरकानूनी गोद लेने, बाल देखभाल संस्थानों में कठोर सजा, आतंकवादी समूहों द्वारा बच्चों का इस्तेमाल और विकलांग बच्चों के खिलाफ अपराधों जैसे नए अपराधों को भी शामिल किया गया है।
सबसे महत्वपूर्ण संशोधन इसके उपबंध 7 को हटाना है जो किसी व्यक्ति द्वारा जघन्य अपराध किए जाने के लिए 21 साल से अधिक उम्र होने पर ही उसके खिलाफ वयस्क की तरह सुनवाई किए जाने से संबंधित है।
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