मंगलवार, 28 अगस्त 2018

गैर जमानती धारा 437 में bail कैसे ले ?

गैर जमानती अपराध (Non-Bailable Offence) क्या है – वे गम्भीर प्रकर्ति के अपराध जो की जमानतीय नही है तथा जिनमे सजा 3 वर्ष व इससे अधिक है वे अपराध गैर जमानती धारा के अपराध समझे जाते है सामान्यतया, ऐसे अपराधों में ज़मानत स्वीकार किया जाना या नहीं करना कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। उदहारण के लिये, अतिचार, चोरी के लिए गृह-भेदन, मर्डर, अपराधिक न्यास भंग आदि ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं। इनमे जमानत भारतीय दंड सहित की धारा 437 के अंतर्गत मिलती है

वैसे भारतीय दंड प्रकिर्या सहिता में गैर जमानती अपराध की कोई परिभाषा नहीं दी गयी है। अतः हम यह कह सकते है कि ऐसा अपराध जो –

  • जमानतीय नहीं हैं, एवं
  • जिसे प्रथम अनुसूची में ग़ैर-ज़मानती अपराध के रूप में अंकित किया गया है, वे ग़ैर-ज़मानती अपराध हैं।
गैर जमानती धारा 437 होती क्या है ?


 अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी –
  • जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजमानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह सन्देह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरूद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है, या, लाया जाता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किन्तु –

स्पष्टीकरण :- किसी आरोपी पर ये संधेय है या, फिर उसने कोई गैर जमानती अपराध किया है जिसकी उसके उपर अफ. आई. आर.  लिखी जा चुकी है तथा उस आरोपी को पुलिस ने वारंट या फिर बिना वारंट दिए गिरफ्तार किया है और गिरफ्तार करने के बाद उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है जो की सेसन कोर्ट या हाई कोर्ट नही है तो उसे बैल पर उस कोर्ट द्वारा छोड़ा जा सकता है लेकिन-

(i) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते हैं | कि, ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है, तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा,

स्पष्टीकरण :- अगर आरोपी ने कोई ऐसा अपराध किया है, जिसकी सजा मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय है तो, ऐसे व्यक्ति को बैल नही दी जाएगी | दुसरे शब्दों में कहे तो वे अपराध जो की उस मजिस्ट्रेट की कोर्ट से बड़ी कोर्ट, सेशन कोर्ट में चलेंगे तथा वे गम्भीर प्रकार के अपराध है \ उन में मजिस्ट्रेट कोर्ट बैल नही देगी |

(ii) यदि ऐसा अपराध, जो संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति, मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह किसी [तीन वर्ष या अधिक परन्तु सात वर्ष से अनधिक कारावास से दण्डनीय संज्ञेय अपराध के लिए] दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा |

स्पष्टीकरण :- अगर, वह गम्भीर प्रक्रति का अपराध है, और वह व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय अपराध के लिए दोषी सिद्ध किया गया हो, या, फिर ऐसे अपराध से दंडनीय रहा हो, जिस अपराध में [तीन वर्ष से ज्यादा के कारावास जो की सात वर्ष से कम नही हो] तथा ऐसा उसके साथ दो बार या इससे ज्यादा दोषी सिद्ध किया गया हो वह व्यक्ति बैल का अधिकारी नही होगा |

परन्तु न्यायायल यह निदेश दे सकेगा कि खण्ड (i) या खण्ड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति सोलह वर्ष से कम आयु का है या कोई स्त्री या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है:

स्पष्टीकरण :- अगर कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम उम्र का है या, फिर स्त्री है या, बीमार है या, दुर्बल/ असक्त / लाचार  व्यक्ति  है | उसे कोर्ट उसे खण्ड (i) और (ii) में दिए गये नियमो के होने के बावजूद, आरोपी को बैल दे सकती है |

परन्तु यह और कि न्यायालय यह भी निदेश दे सकेगा कि खंड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड़ दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठीक है:

स्पष्टीकरण :- ये उप धारा कहती है की कोर्ट को अगर खंड (ii) के अनुसार, किसी कारण से ये लगे की आरोपी को बैल दी जा सकती है तो वो बैल दे सकती है |

परन्तु, यह और भी, कि, केवल यह बात कि अभियुक्त की आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए हो सकती है, जमानत मंजूर करने से इंकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड़ दिए जाने के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वह ऐसे निदेशों का, जो न्यायालय द्वारा दिए जाए, अनुपालन करेगा।

स्पष्टीकरण :- पुलिस, अगर ये कहे की उन्हें अभी आरोपी की शिनाखत शिकायतकर्ता से करवानी है इसलिए, इसलिए, अभी आरोपी को बैल नही दी जाये, तो ये आधार न्यायसंगत नही होगा | अगर आरोपी कोर्ट में बैल बांड सहित ये वचन दे की वो कोर्ट द्वारा दिए गये सभी नियमो व वचनों का पालन करेगा तो कोर्ट उसको बैल दे सकती है |

[परन्तु, यह और भी कि उस व्यक्ति को, यदि उसके द्वारा ऐसा अपराध आरोपित है जिसमें मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा से दण्डनीय है तो न्यायालय द्वारा लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर दिए बिना इस उपधारा के अधीन जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा]

स्पष्टीकरण :- अगर आरोपी का अपराध मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा से दण्डनीय है तो कोर्ट उसे बैल नही देगा | ऐसे में अगर सरकारी वकील साहब भी अगर  विरोध के लिए, किसी कारण उपस्तिथ नही है, तो भी,  इस आधार पर बैल नही मिलेगी |

(2)  यदि, ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होता है कि, यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपरध किया है किंतु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त धारा 446 (क) के उपबँधों के अधीन रहते हुए और ऐसी जांच लम्बित रहने तक जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभूओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर, छोड़ दिया जाएगा।

स्पष्टीकरण :- अगर, पुलिस या कोर्ट को ये विश्वास हो की आरोपी ने कोई गैर जमानती अपराध नही किया है, लेकिन कोर्ट में सच्चाई सामने लाने के लिए केस का चलना जरूरी हो तो, पुलिस और कोर्ट आरोपी को बैल दे सकते है | ऐसे में आरोपी को धारा 446A के अनुसार बैल बांड देना होता है जिसमे जमानती भी होता है | इसमे उसे बैल के नियमो या फिर कोर्ट के द्वारा कोई नये नियम का पालन करना होता है | { ऐसे में पुलिस की पावर है की वो नॉन बैलेबल केस में भी आरोपी को गिरफ्तार नही कर के चार्ज शीट फ़ाइल् कर सकती है, लेकिन ऐसा कम ही होता है मैंने ऐसा वकील साहबो के पर्सनल केस में ही देखा है }

(3) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दण्डनीय कोई अपराध या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (1) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय शर्तें अधिरोपित करेगा, –

(क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंध-पत्र की शर्तों के अनुसार उपस्थित होगा,

(ख) कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, वैसा अपराध नहीं करेगा, और

(ग) कि व्यक्ति, उस मामले में तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी को, मामले के तथ्य प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, उत्प्रेरित धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं छेड़-छाड़ सकेगा।और न्यायहित में ऐसी अन्य शर्तें भी, जैसी वह ठीक समझे, अधिरोपित कर सकेगा।

स्पष्टीकरण :- इस उप धारा (1) में दिए गए उपबंधो व कोई भी गंभीर अपराध वो चाहे 7 वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडित क्यों ना हो | या फिर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6, 16 या 17 के  अधीन हो, तो भी,  ऐसे में कोर्ट, कोई भी अपनी  शर्त लगा कर आरोपी को बैल दे सकता है

इसमें आरोपी बैल बांड की सारी शर्तो का पालन करेगा
जो आरोप, आरोपी पर केस में लगा है वह ऐसा कार्य नही करेगा न ही ऐसा ही कार्य दुबारा कभी करेगा
आरोपी पुलिस या कोर्ट को कोई परलोभन नही देगा, न ही स्वय या किसी और के द्वारा धमकी देगा व किसी भी सबूत से छेड़ छाड़ करेगा
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोड़ने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा।

स्पष्टीकरण :- जज साहब आरोपी को बैल क्यों दे रहे है इसके कारणों को अपने आर्डर में लिखेंगे

(5) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।

स्पष्टीकरण :- अगर कोर्ट को लगे की उसने जिस आरोपी को उसने बैल पर छोड़ा है उसे किसी कारण वश अब बैल देनी सही नही है तो कोर्ट उस आरोपी को गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है

(6) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता है तो, यदि ऐसा व्यक्ति उक्त सम्पूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे मजिस्ट्रेट अन्यथा न दे वह मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।

स्पष्टीकरण :- अगर किसी गैर जमानती अपराध में आरोपी जेल में है और चार्ज लगने के बाद केस गवाही में है और अगले 60 दिन तक कोई गवाही नही हुई है तो इस आधार पर आरोपी को बैल मिल सकती है |

(7) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह अभियुक्त को, सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुओं रहित बन्धपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।

      स्पष्टीकरण :- केस अंतिम निर्णय के समय या फिर इससे पहले अगर कोर्ट को लगे की आरोपी को बैल दी जानी चाहिए, तो,  कोर्ट आरोपी को बिना जमानती के भी बैल पर छोड़ सकता है |
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