धर्म क्या है?
संविधान में धर्म की कोई परिभाषा नही दी गयी है। धर्म की कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक परिभाषा नही दी जा सकती। यह एक आस्था और विश्वास का विषय है और इसमें बहुत से कर्मकांड ओर आचरण आते है जिन्हें उस धर्म के अनुयायी उस धर्म का अभिन्न अंग मानते है। कुछ धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नही रखते। बौद्ध और जैन अनीश्वरवादी धर्म है।
अन्तःकरन व्यक्ति की ईश्वर, मनुष्य और अन्य जीवधारियों से अपनी इच्छानुसार सम्बंध बनाने की आंतरिक स्वतंत्रता है। धर्म को मानने का अर्थ है निर्बाध होकर ओर खुलकर अपनी आस्था और विश्वास की घोषणा करना। आचरण करने से अभिप्रेत है अपने धर्म से जुड़े हुए कर्मकांड करना और कर्तव्यों का पालन करना तथा अपने धार्मिक विश्वास को प्रदर्शित करना।
प्रचार से अभिप्रेत है अपने विश्वास को दूसरे व्यक्ति को संसूचित करना और उस विश्वास के सिंद्धान्तो को प्रकट करना किंतु इसके अंतर्गत किसी दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करा कर उसे अपने विश्वास में लाना नही है।
संविधान में धर्म की कोई परिभाषा नही दी गयी है। धर्म की कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक परिभाषा नही दी जा सकती। यह एक आस्था और विश्वास का विषय है और इसमें बहुत से कर्मकांड ओर आचरण आते है जिन्हें उस धर्म के अनुयायी उस धर्म का अभिन्न अंग मानते है। कुछ धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नही रखते। बौद्ध और जैन अनीश्वरवादी धर्म है।
अन्तःकरन व्यक्ति की ईश्वर, मनुष्य और अन्य जीवधारियों से अपनी इच्छानुसार सम्बंध बनाने की आंतरिक स्वतंत्रता है। धर्म को मानने का अर्थ है निर्बाध होकर ओर खुलकर अपनी आस्था और विश्वास की घोषणा करना। आचरण करने से अभिप्रेत है अपने धर्म से जुड़े हुए कर्मकांड करना और कर्तव्यों का पालन करना तथा अपने धार्मिक विश्वास को प्रदर्शित करना।
प्रचार से अभिप्रेत है अपने विश्वास को दूसरे व्यक्ति को संसूचित करना और उस विश्वास के सिंद्धान्तो को प्रकट करना किंतु इसके अंतर्गत किसी दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन करा कर उसे अपने विश्वास में लाना नही है।
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