रिट 5 प्रकार की होती है।
1, बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
2: परमादेश (Mandamus)
3: प्रतिषेध (Prohibition)
4: अधिकार पृच्छा (quo warantto)
5: उत्प्रेशन (certiorari).
आज बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख के बारे में जानते है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण:-
इसे इंग्लैंड में हैबियस कार्पस कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है शरीर लेकर आओ। हिंदी नाम का भी यही अर्थ है की बंदी को न्यायालय के सामने पेश किया जाए। इस रिट के द्वारा न्यायालय ऐसे व्यक्ति को जिसे निरुद्ध किया गया है या कारावास में रखा गया है न्यायालय के समक्ष उपस्थित करा सकता है और उस व्यक्ति के निरुद्ध किये जाने के कारणों की जांच कर सकता है। यदि निरोध का कोई विधिक औचित्य नही है तो उसे स्वतंत्र कर दिया जाता है।
कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट AIR 1974 SC 510. के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष पेश करना इस रिट का सारवान लक्षण नही है।
यह रिट निम्नलिखित परिस्थितियों में निकली जाती है-------
1: जहा निरोध प्रक्रिया के उल्लंघन में है, जैसे निरुद्ध व्यक्ति को विहित समय के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित न करना
2: गिरफ्तारी का आदेश किसी विधि का उल्लंघन करता है, जैसे मनमाना आदेश
3: किसी व्यक्ति को किसी प्राइवेट व्यक्ति ने निरुद्ध किया है
4: किसी व्यक्ति को ऐसे विधि के अधीन गिरफ्तार करना जो असंवैधानिक है
5: निरोध आदेश असद्भावि है।
साधारण नियम यह है कि जो व्यक्ति रिट की याचिका कर्ता है वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके अधिकार का अतिलंघन हुआ हो। किन्तु यह नियम बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट पर लागू नही होता। बंदी की और से उसके मित्र या सामाजिक कार्यकर्ता या किसी अपरिचित व्यक्ति द्वारा भी याचिका पेश की जा सकती है।
यह रिट विधिक संरक्षक की सहायता के लिए दी जा सकती है जिससे वह किसी अन्य व्यक्ति से किसी बालक की अभिरक्षा प्राप्त कर सके। यह निवारक निरोध के मामले में भी प्राप्त की जा सकती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण ऐसा उपचार है जो सबसे अशक्त या साधनहीन व्यक्ति को सर्वाधिक शक्तिमान प्राधिकारी के विरुद्ध उपलब्ध है। यह वह कुंजी है जो स्वतंत्रता के द्वार खोल देती है।
यह इंग्लैंड में उपजी सबसे पुरानी रिट है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की राज्य या किसी अन्य प्राइवेट व्यक्ति द्वारा निरुद्ध किये जाने पर रक्षा की जाती थी।
1, बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
2: परमादेश (Mandamus)
3: प्रतिषेध (Prohibition)
4: अधिकार पृच्छा (quo warantto)
5: उत्प्रेशन (certiorari).
आज बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख के बारे में जानते है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण:-
इसे इंग्लैंड में हैबियस कार्पस कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है शरीर लेकर आओ। हिंदी नाम का भी यही अर्थ है की बंदी को न्यायालय के सामने पेश किया जाए। इस रिट के द्वारा न्यायालय ऐसे व्यक्ति को जिसे निरुद्ध किया गया है या कारावास में रखा गया है न्यायालय के समक्ष उपस्थित करा सकता है और उस व्यक्ति के निरुद्ध किये जाने के कारणों की जांच कर सकता है। यदि निरोध का कोई विधिक औचित्य नही है तो उसे स्वतंत्र कर दिया जाता है।
कानू सान्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट AIR 1974 SC 510. के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि बंदी के शरीर को न्यायालय के समक्ष पेश करना इस रिट का सारवान लक्षण नही है।
यह रिट निम्नलिखित परिस्थितियों में निकली जाती है-------
1: जहा निरोध प्रक्रिया के उल्लंघन में है, जैसे निरुद्ध व्यक्ति को विहित समय के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित न करना
2: गिरफ्तारी का आदेश किसी विधि का उल्लंघन करता है, जैसे मनमाना आदेश
3: किसी व्यक्ति को किसी प्राइवेट व्यक्ति ने निरुद्ध किया है
4: किसी व्यक्ति को ऐसे विधि के अधीन गिरफ्तार करना जो असंवैधानिक है
5: निरोध आदेश असद्भावि है।
साधारण नियम यह है कि जो व्यक्ति रिट की याचिका कर्ता है वह ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके अधिकार का अतिलंघन हुआ हो। किन्तु यह नियम बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट पर लागू नही होता। बंदी की और से उसके मित्र या सामाजिक कार्यकर्ता या किसी अपरिचित व्यक्ति द्वारा भी याचिका पेश की जा सकती है।
यह रिट विधिक संरक्षक की सहायता के लिए दी जा सकती है जिससे वह किसी अन्य व्यक्ति से किसी बालक की अभिरक्षा प्राप्त कर सके। यह निवारक निरोध के मामले में भी प्राप्त की जा सकती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण ऐसा उपचार है जो सबसे अशक्त या साधनहीन व्यक्ति को सर्वाधिक शक्तिमान प्राधिकारी के विरुद्ध उपलब्ध है। यह वह कुंजी है जो स्वतंत्रता के द्वार खोल देती है।
यह इंग्लैंड में उपजी सबसे पुरानी रिट है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की राज्य या किसी अन्य प्राइवेट व्यक्ति द्वारा निरुद्ध किये जाने पर रक्षा की जाती थी।