कार्य स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा का एक और कानून
आज से लगभग 22 वर्ष पहले राजस्थान के गांव में एक समाजसेवी महिला के साथ सामूहिम दुष्कर्म की घटना से आहत होकर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट् याचिका प्रस्तुत की गई थी जिसमें पीड़िता के लिए विशेष न्याय या अभियुक्त के लिए सज़ा आदि की प्रार्थना के स्थान पर एक जनहित विषय प्रस्तुत किया गया था।
याचिका में प्रार्थना की गई थी कि काम पर लगी महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं को रोकने के लिए विशेष कानून बनाया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 में विशाका बनाम राजस्थान सरकार नामक निर्णय के माध्यम से कई स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए काम पर लगी महिलाओं के नियोक्ताओं को उनकी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के इन 16 वर्ष पुराने निर्देशों को कानून का रूप देने में कितना विलम्ब कर दिया है, यह अब विचार का विषय नहीं रहा। इस विलम्ब को भारतीय राजनीति की उदासीनता कहें या अक्षमता? वैसे यह दोनों विशेषण सत्य ही हैं।
भारतीय राजनीति अनेकों जनहित विषयों के प्रति सदैव उदसीन ही रहती है, जब तक कि कोई विशेष आन्दोलन न छिड़े। भारतीय राजनीति की बागडोर सम्भालने वाले लोग समाज सेवा और राष्ट्रभक्ति के भावों से शून्य होने के कारण अनेकों बार जनहित विषयों पर अपनी अक्षमता का परिचय भी देते हैं। देर आये दुरुस्त आये। अन्तत: कार्य स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा को एक कानूनी रूप 9 दिसम्बर, 2013 से दे ही दिया गया।
इस नये कानून के अनुसार अब प्रत्येक ऐसे कारोबार, कार्यालय, दुकान या किसी भी कार्य स्थल का मालिक अपने अधीन कार्य करने वाली प्रत्येक महिला की इजत और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। कार्य के सम्बन्ध में घर से निकलने के बाद किसी महिला के साथ शारीरिक छेड़छाड़ हो या उसके प्रति दुर्भावाना पूर्वक कोई टिप्पणियां की जाये, उससे किसी प्रकार की कामुक यिा की मांग की जाये या किसी भी रूप में उसके साथ कामवासना की संतुष्टि का प्रयास किया जाये, यह सब कार्य अब गम्भीर अपराध माने जायेंगे। काम करने वाली महिला को भी बड़े व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है।
इसमें ठेके पर काम करने वाली अनपढ़ महिलाओं से लेकर पढ़ी-लिखी उन छात्राओं को भी शामिल किया गया है जो प्रशिक्षण के सिलसिले में कार्य करती हैं। जैसे – कानून के अध्ययन के बाद अदालतों में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली छात्राएं।
इस कानून के अनुसार कार्यरत महिलाओं को घर से लाते हुए या छोड़ते हुए भी यदि कोई छेड़खानी होती है तो वह भी दण्डनीय होगी। प्रत्येक कार्य स्थल के प्रबन्धन को एक आंतरिक शिकायत समिति बनानी होगी जिसकी अध्यक्षता कोई महिला ही करेगी, जो उस कार्यालय में उच्च स्तर पर अधिकारी हो। इस समिति की आधी सदस्या महिलायें ही होंगी।
कार्य स्थल पर किसी कामुक परेशानी की शिकायत घटना के तीन माह के अन्दर इस समिति के समक्ष प्रस्तुत करनी होगी। यह समिति शिकायत प्राप्त होने के तीन माह के भीतर अपनी छानबीन पूरी करके रिपोर्ट देगी। इस रिपोर्ट पर सम्बन्धित पंबन्धन दो माह में कार्यवाही करेगा। इस आंतरिक शिकायत समिति के पास यह भी अधिकार होगा कि वह पीड़ित महिला को कोई अंतरिम राहत भी दे सके। जैसे स्थानांतरण की सिफारिश या मुआवजे आदि का आदेश। इस शिकायत समिति की कार्यवाही सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी। यदि कोई प्रबन्धन इस प्रकार की समिति का गठन नहीं करता तो उन पर 50 हजार रुपये जुर्माने का भी प्रावधान है।
इस कानून के अंतर्गत शिकायत की जांच पूरी होने तक किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जबकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 354ए में पहले से ही कामुक शोषण के विरुध्द एक मजबूत प्रावधान मौजूद है जिसके अनुसार शिकायत मिलते ही आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकता है।
अब देखना यह है कि यह नया कानून एक कमजोर सी खानापूर्ति की तरह सिध्द होगा या वास्तव में इससे कार्य स्थल पर महिलाओं को सुरक्षा का एहसास हो पायेगा।
अब देखना यह है कि यह नया कानून एक कमजोर सी खानापूर्ति की तरह सिध्द होगा या वास्तव में इससे कार्य स्थल पर महिलाओं को सुरक्षा का एहसास हो पायेगा।
दूसरी तरफ मेरा यह स्पष्ट मत है कि कानूनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, परन्तु इसके बावजूद भी अपराधों की संख्या और नये-नये अपराधों की रचना कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। समाज में जागृति का माध्यम है समाचार पत्र तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया। इस क्षेत्र में महिलाओं का शोषण कम नहीं हो रहा। हाल ही में एक अखबार के सम्पादक तरुण तेजपाल पर अपने अधीन कार्य करने वाली महिला पत्रकार का आरोप सामने आया।
इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय से आशा होती है कि समय-समय पर जनहित में सरकारों और समाज को यथोचित निर्देश जारी करे। 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के आधार पर ही आज यह नया कानून सामने आया है, परन्तु यक्ष प्रश्न फिर वहीं खड़ा है कि क्या कानून का पालन सुनिश्चित कराने वाली सबसे बड़ी संस्था स्वयं महिलाओं को उस प्रकार की सुरक्षा दे पा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय के दो सेवानिवृत्त न्यायाधीशों पर भी कामुक शोषण के आरोप हाल ही में चर्चा का विषय रहे हैं। कोई भी अपराध केवल कानूनों से नहीं रूक सकता, अपराध रोकने के लिए तो शिक्षा व्यवस्था में चरित्र का लम्बा प्रशिक्षण लागू करना ही होगा।
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