सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बैंकिंग गतिविधियों से जुड़ा धोखाधड़ी जैसा अपराध सिर्फ बैंकों तक सीमित नहीं है बल्कि यह उसके ग्राहकों और समाज के प्रति भी अपराध है। न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ ही अदालतों से कहा है कि ऐसे अपराधों के आरोपियों के प्रति किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरती जाए।
न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने कहा कि यह नैतिक भ्रष्टाचार से जुड़ा अपराध है और ऐसे मामलों में बैंक से छल करके निकाली गई राशि वापस करने की पेशकश के आधार पर आरोपी को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘धारा 420 (छलकपट) और धारा 471 (फर्जी दस्तावेज का इस्तेमाल) सहित बैंकिंग गतिविधियों से जुड़े अपराधों का जनता पर बुरा असर पड़ता है और इससे समाज भी प्रभावित होता है। इस तरह के अपराध लोक सेवक द्वारा नैतिक भ्रष्टता की श्रेणी में आता है।’
न्यायाधीशों ने कहा कि पहली नजर में यह कहा जा सकता है कि ऐसे मामलों में बैंक ही पीडि़त है जबकि वास्तव में बैंक के ग्राहक सहित, मोटे तौर पर सभी समान रूप से प्रभावित होते हैं।
न्यायालय ने इसके साथ ही बैंक के एक कर्मचारी और एक निजी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने का कलकत्ता हाईकोर्ट का 31 मार्च, 2010 का आदेश निरस्त कर दिया। इन दोनों आरोपियों द्वारा बैंक की रकम लौटाने के बाद अदालत ने यह कार्यवाही समाप्त कर दी थी।
न्यायालय ने इसके साथ ही बैंक के एक कर्मचारी और एक निजी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही समाप्त करने का कलकत्ता हाईकोर्ट का 31 मार्च, 2010 का आदेश निरस्त कर दिया। इन दोनों आरोपियों द्वारा बैंक की रकम लौटाने के बाद अदालत ने यह कार्यवाही समाप्त कर दी थी।
शीर्ष अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि इस मामले में कानून के मुताबिक कार्यवाही करके यथाशीघ्र इसका निबटारा किया जाए।
Yadi koi person apke ghar ke pani ke nikasi ko roke to uske liye kya niyam h
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