घरेलू हिंसा की जड़ें हमारे समाज तथा परिवार में गहराई तक जम गई हैं। इसे व्यवस्थागत समर्थन भी मिलता है। घरेलू हिंसा के खिलाफ यदि कोई महिला आवाज मुखर करती है तो इसका तात्पर्य होता है अपने समाज और परिवार में आमूलचूल परिवर्तन की बात करना।
प्राय: देखा जा रहा है कि घरेलू हिंसा के मामले दिनों-दिन बढ्ते जा रहे हैं। परिवार तथा समाज के संबंधों में व्याप्त ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, अपमान तथा विद्रोह घरेलू हिंसा के मुख्य कारण हैं। परिवार में हिंसा की शिकार सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि वृद्ध और बच्चे भी बन जाते हैं।
प्रक़ति ने महिला और पुरूष की शारीरिक संरचनाएं जिस तरह की हैं उनमें महिला हमेशा नाजुक और कमजोर रही है, वहीं हमारे देश में यह माना जाता रहा है कि पति को पत्नि पर हाथ उठाने का अधिकार शादी के बाद ही मिल जाता है। इसी तारतम्य में वर्ष 2006 में भारत में घरेलू हिंसा से पीडित महिलाओं, बच्चों अथवा वृद्धों को कुछ राहत जरूर मिल गयी है।
घरेलू हिंसा की परिभाषा
पुलिस – महिला, वृद्ध अथवा बच्चों के साथ होने वाली किसी भी तरह की हिंसा अपराध की श्रेणी में आती है। महिलाओं के प्रति घलेलू हिंसा के अधिकांश मामलों में दहेज प्रताड़ना तथा अकारण मारपीट प्रमुख हैं।
राज्य महिला आयोग – कोई भी महिला यदि परिवार के पुरूष द्वारा की गई मारपीट अथवा अन्य प्रताड्ना से त्रस्त है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार कहलाएगी। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 उसे घरेलू हिंसा के विरूद्ध संरक्षण और सहायता का अधिकार प्रदान करता है।
आधारशिला (एन.जी.ओ.) – परिवार में महिला तथा उसके अलावा किसी भी व्यक्ति के साथ मारपीट, धमकी देना तथा उत्पीड़न घरेलू हिंसा की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा लैंगिक हिंसा, मौखिक और भावनात्मक हिंसा तथा आर्थिक हिंसा भी घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं।
(पुलिस, राज्य महिला आयोग तथा एन.जी.ओ. द्वारा घरेलू हिंसा की जो परिभाषाएं दी गई हैं उनका तात्पर्य लगभग एक जैसा ही है हालांकि भाषा परिवर्तित है।)
घरेलू हिंसा- विश्व की स्थिति
महिलाओं को अधिकारों की सुरक्षा को अंतर्राष्ट्रीय महिला दशक (1975-85) के दौरान एक पृथक पहचान मिली थी। सन् 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ में इसे अंतर्राष्ट्रीय कानून का रूप दिया गया था। विश्व के अधिकांश देशों में पुरूष प्रधान समाज है। पुरूष प्रधान समाज में सत्ता पुरूषों के हाथ में रहने के कारण सदैव ही पुरूषों ने महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान दिया है।
यही कारण है कि पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं के प्रति अपराध, कम महत्व देने तथा उनका शोषण करने की भावना बलवती रही है। ईरान, अफगानिस्तान की तरह अमेरिका जैसे विकासशील देश में भी महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। अमेरिका में एक नियम है, जिसके अनुसार महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। अमेरिका में एक नियम है, जिसके अनुसार यदि एक परिवार में मॉं और बेटा है तो वे एक ही शयन कक्ष के मकान के हकदार होंगे।
इससे स्पष्ट है कि अमेरिका जैसे देश में भी महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जाता है। दुनिया के सबसे अधिक शक्तिशाली व उन्नत राष्ट्र होने के बावजूद अमेरिका में अनेक क्षेत्रों में महिलाओं को पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
भारत में घरेलू हिंसा – Domestic Violation in India
दिल्ली स्थित एक सामाजिक संस्था द्वारा कराये गये अध्ययन के अनुसार भारत में लगभग पांच करोड़ महिलाओं को अपने घर में ही हिंसा का सामना करना पड़ता है। इनमें से मात्र 0.1 प्रतिशत ही हिंसा के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने आगे आती हैं।
घरेलू हिंसा के प्रमुख कारण
पालन-पोषण में पितृसत्ता अधिक महत्व रखती है इसलिए लड़की को कमजोर तथा लड़के को साहसी माना जाता है। लड़की स्वातंत्र्य व्यक्तित्व को जीवन की आरम्भ अवस्था में ही कुचल दिया जाता है।
घरेलू हिंसा के प्रमुख कारण निम्न माने जाते हैं
1. समतावादी शिक्षा व्यवस्था का अभाव।
2. महिला के चरित्र पर संदेह करना।
3. शराब की लत।
4. इलेक्ट्रानिक मीडिया का दुष्प्रभाव।
5. महिला को स्वावलम्बी बनने से रोकना।
2. महिला के चरित्र पर संदेह करना।
3. शराब की लत।
4. इलेक्ट्रानिक मीडिया का दुष्प्रभाव।
5. महिला को स्वावलम्बी बनने से रोकना।
घरेलू हिंसा का दुष्प्रभाव
महिलाओं तथा बच्चों पर घरेलू हिंसा के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक दुष्प्रभाव पड़ते हैं। इसके कारण महिलाओं के काम तथा निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। परिवार में आपसी रिश्तों और आस-पड़ौस के साथ रिश्तों व बच्चों पर भी इस हिंसा का सीधा दुष्प्रभाव देखा जा सकता है
घरेलू हिंसा के कारण देहज मृत्यु, हत्या और आत्महत्या बढ़ी हैं। वेश्यावृत्ति की प्रवृत्ति भी इसी कारण बढ़ी है।
महिला की सार्वजनिक भागीदारी में बाधा होती है। महिलाओं का कार्य क्षमता घटती है, साथ ही वह डरी-डरी भी रहती है। परिणामस्वरूप प्रताडि़त महिला मानसिक रोगी बन जाती है जो कभी-कभी पागलपन की हद तक पहुंच जाती है।
पीडित महिला की घर में द्वितीय श्रेणी की स्थिति स्थापित हो जाती है।
महिला की सार्वजनिक भागीदारी में बाधा होती है। महिलाओं का कार्य क्षमता घटती है, साथ ही वह डरी-डरी भी रहती है। परिणामस्वरूप प्रताडि़त महिला मानसिक रोगी बन जाती है जो कभी-कभी पागलपन की हद तक पहुंच जाती है।
पीडित महिला की घर में द्वितीय श्रेणी की स्थिति स्थापित हो जाती है।
पुलिस की भूमिका
घरेलू हिंसा के प्रकरणों में कई बार पुलिस द्वारा एफ.आई.आर. दर्ज नहीं की जाती, सिर्फ रोजनामचे में लिखा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रताडित महिलाओं को एफ.आई.आर. की नकल नहीं दी जाती। मांगने पर अकारण परेशान किया जाता हैं। आंकडे बढ़ जाएंगे इस कारण प्रकरण पंजीबद्ध करने से पुलिस बचती है।
पति द्वारा महिलाओं को पीटने अथवा मानसिक यंत्रणा देने को पुलिस बड़ा मुद्दा नहीं मानती। अक्सर उसका कहाना होता है कि ‘पति ने ही तो पीटा है ऐसी क्या बात हो गई, पति मारता है तो प्यार भी करता है।‘ यह कहकर पुलिस प्रताडित महिला को टाल देती है। चूंकि महिला की शारिरिक चोट पुलिस को दिखाई नहीं देती इसलिए भी वह उसे गंभीरता से नहीं लेती।
थाने में सिर्फ एक यो दो महिला सिपाही पदस्थ की जाती हैं। महिला या घरेलू हिंसा से संबंधित प्रकरणों में प्राय: उनका हस्तक्षेप कम कर दिया जाता है, क्योंकि उनका अधिकारी सहित बहुमत पुलिस का है। यही कारण है कि महिला पुलिसकर्मी भी घरेलू हिंसा की शिकार महिला की ज्यादा मदद नहीं कर पाती हैं। कई बार तो उनका ही शोषण कर लिया जाता है।
थाना स्तर पर संवेदनशील लोग नहीं हैं।
पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर प्रताडित महिला को समझौते के लिए विवश करते हैं अथवा प्रकरण को कमजोर कर देते हैं।
थाना स्तर पर संवेदनशील लोग नहीं हैं।
पुलिसकर्मी रिश्वत लेकर प्रताडित महिला को समझौते के लिए विवश करते हैं अथवा प्रकरण को कमजोर कर देते हैं।
पुलिस का कहना होता है कि दहेज तथा घरेलू हिंसा के झूठे प्रकरण ही अधिक होते हैं।
डाकन, नाता आदि मानसिक यंत्रणाओं के मुद्दे पर पुलिस असंवेदनशील है। पुलिस का कहना है कि यह सामाजिक मुद्दा है, पुलिस का नहीं।
डाकन, नाता आदि मानसिक यंत्रणाओं के मुद्दे पर पुलिस असंवेदनशील है। पुलिस का कहना है कि यह सामाजिक मुद्दा है, पुलिस का नहीं।
98, मामले में पुलिस बिना किसी प्रशिक्षित पारिवारिक परामर्शदाता के सलाह देती है अथवा समझौता करा देती है। न तो इस समझौते में घटना का ब्यौरा होता है और न ही पति द्वारा यह लिखाया जाता है कि भविष्य में वह ऐसा नहीं करेगा।
परिवार व अन्य अदालतें
महिलाओं को उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने अथवा दोषियों को उपयुक्त सजा दिलवाने के लिए पारिवारिक अदालतों का गठन सन् 1984 में किया गया था। तब यह माना था कि अब महिला को घरेलू हिंसा से राहत मिल जाएगी।
इन अदालतों में कहा जाता है कि वकील की जरूरत नहीं है पर सारे कागज वकील ही बनाते हैं और हर समय जज यही कहते हैं कि तुम्हारे वकील कहां हैं ? उनको लाओ। यह एक बड़ा विरोधाभास है, इन अदालतों की कथी और करनी में।
सोचा गया था कि इन अदालतों में मामले जल्दी निबट जाएंगे पर इनमें भी समय बहुत लगता है।
गुजारा भत्ता के आदेश हो जाते हैं पर उनका पालन नहीं होता।
इन अदालतों में गवाहों पर बहुत जोर रहता है। पीडि़ता के लिए गवाह जुटाना मुश्किल होता है।
अदालत में जो काउंसलर लगे हुए हैं उनके चयन में पारदर्शिता नहीं है। वे अपने विषय के विशेषज्ञ भी नहीं हैं।
गुजारा भत्ता के आदेश हो जाते हैं पर उनका पालन नहीं होता।
इन अदालतों में गवाहों पर बहुत जोर रहता है। पीडि़ता के लिए गवाह जुटाना मुश्किल होता है।
अदालत में जो काउंसलर लगे हुए हैं उनके चयन में पारदर्शिता नहीं है। वे अपने विषय के विशेषज्ञ भी नहीं हैं।
पारिवारिक अदालतों के मामलों को लकर कोई अध्ययन नहीं हुआ है कि वहां प्रताडित महिलाओं को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
अच्छे वकील फीस अधिक मांगते हैं इस कारण पीडित महिलाओं को बहुत दिक्कत होती है।
अच्छे वकील फीस अधिक मांगते हैं इस कारण पीडित महिलाओं को बहुत दिक्कत होती है।
जाति पंचायतें
परिवार-समुदायों, समुदायों की जाति पंचायतों का गांव में अधिक और शहरों में कम प्रभाव है। इनसे जातिवाद बढ़ा है। यह पंचायतें महिलाओं के हक में नहीं हैं।
इन अदालतों में प्राय: प्रताडि़त महिलाओं को नहीं बुलाया जाता बल्कि उनके बारे में एक पक्षीय निर्णय ले लिया जाता है। हर जगह पुरूष प्रधान जाति पंचायतें ज्यादा हैं।
जहं/महिलाओं की संस्थाएं सक्रिय नहीं हैं वहां तो घरेलू हिंसा को लेकर हुए फैसले पूरी तरह एक पक्षीय रहे हैं।
हस्तक्षेप कैसेट हो
जहं/महिलाओं की संस्थाएं सक्रिय नहीं हैं वहां तो घरेलू हिंसा को लेकर हुए फैसले पूरी तरह एक पक्षीय रहे हैं।
हस्तक्षेप कैसेट हो
शिक्षा संस्थाओं में छात्राओं को खुलकर शिक्षा देना चाहिये ताकि वे घरेलू हिंसा की शिकार न हों। उन्हें काउंसिलिंग तथा कानूनी ज्ञान की जानकारी देना उचित होगा।
गांव में यह पता लग जाता है कि किसके घर में समस्या चल रही है। शहर में यह पता नहीं लगता है इस कारण वहंा हर स्तर पर बात करने की आवश्यकता है। शहर में समस्याग्रस्त महिलाओं के संदर्भ में पुरूषों पर काउंसलिंग का असर नहीं होता। इसी कारण पुरूष छात्रों के साथ भी काउंसिलिंग का सिलसिला स्कूल-कालेज के स्तर से ही शुरू हो जाना चाहिये।
गांव में यह पता लग जाता है कि किसके घर में समस्या चल रही है। शहर में यह पता नहीं लगता है इस कारण वहंा हर स्तर पर बात करने की आवश्यकता है। शहर में समस्याग्रस्त महिलाओं के संदर्भ में पुरूषों पर काउंसलिंग का असर नहीं होता। इसी कारण पुरूष छात्रों के साथ भी काउंसिलिंग का सिलसिला स्कूल-कालेज के स्तर से ही शुरू हो जाना चाहिये।
शिक्षा के साथ-साथ लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा हो, ऐसा प्रयास करना चाहिये। यह काम शिक्षकों का है। शिक्षकों के प्रशिक्षण में इस मुद्दे को शामिल किया जाना चाहिये।
सम्पत्ति में लड़कियों को पूरा अधिकार होना चाहिए घर का वातावरण लड़की को आत्मविश्वासी बनाता है। उसको मजबूत करने की आवश्यकता है।
सम्पत्ति में लड़कियों को पूरा अधिकार होना चाहिए घर का वातावरण लड़की को आत्मविश्वासी बनाता है। उसको मजबूत करने की आवश्यकता है।
पुलिस का हस्तक्षेप
पुलिस की भूमिका काफी संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। उनकी ट्रेन में घरेलू हिंसा एवं महिला संवेदनशीलता को विशेष रूप से शामिल किया जाना चाहिये।
प्रत्येक थाने पर प्रतिमाह ‘समस्या समाधान शिविर’ आयोजित करने का आदेश निकल चुका है पर उसकी किसी को भी जानकारी नहीं है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहियेा इसका दिन व समय तय होना चाहिये। अखबार/रेडियो/दूरदर्शन पर प्रचार होना चाहिये।
थान स्तर पर काउंसलर हों। विशेष रूप से घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस जब समझौता कराती है तो एक प्रशिक्षित काउंसलर की मदद लेना चाहिये।
प्रत्येक थाने पर प्रतिमाह ‘समस्या समाधान शिविर’ आयोजित करने का आदेश निकल चुका है पर उसकी किसी को भी जानकारी नहीं है। इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहियेा इसका दिन व समय तय होना चाहिये। अखबार/रेडियो/दूरदर्शन पर प्रचार होना चाहिये।
थान स्तर पर काउंसलर हों। विशेष रूप से घरेलू हिंसा के मामलों में पुलिस जब समझौता कराती है तो एक प्रशिक्षित काउंसलर की मदद लेना चाहिये।
महिला आयोग का हस्तक्षेप
महिला आयोग का महिला हिंसा के संबंध में संदेश सरकार को मिलना चाहिये। वह ताकतवर है, यह संदेश नहीं जा रहा है। वह अपने ही निर्णय को लागू नहीं करवा पा रहा है, यह स्थिति बदलना होगी।
महिला आयोग को नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप करना चाहिये। जैसे महिला नीति कार्यस्थल पर महिला यौन शोषण के बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेश का क्रियान्वयन कैसे हो रहा है। महिला विकास कार्यक्रम की क्या उपादेयता है, उसे कैसेट सार्थक बनाया जा सकता है। ऐसे कौन से निर्णय एवं कार्य हैं, जो महिलाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, इन सब पर आयोग को नजर रखनी चाहिये और समय-समय पर हस्तक्षेप करते रहना चाहिये।
महिला आयोग को नीतिगत स्तर पर हस्तक्षेप करना चाहिये। जैसे महिला नीति कार्यस्थल पर महिला यौन शोषण के बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेश का क्रियान्वयन कैसे हो रहा है। महिला विकास कार्यक्रम की क्या उपादेयता है, उसे कैसेट सार्थक बनाया जा सकता है। ऐसे कौन से निर्णय एवं कार्य हैं, जो महिलाओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं, इन सब पर आयोग को नजर रखनी चाहिये और समय-समय पर हस्तक्षेप करते रहना चाहिये।
घरेलू हिंसा के उदाहरण
(1) शारिरिक हिंसा
- मारपीट करना
- थप्पड़ मारना
- ठोकर मारना
- दांत से काटना
- लात मारना
- मुक्का मारना
- धकेलना
- किसी अन्य रीति से शारीरिक पीड़ा या क्षति पहुँचाना
(2) लैंगिक हिंसा
- बलात लैंगिक मैथुन
- अश्लील साहित्य या कोई अन्य अश्लील तस्वीरों या को देखने के लिए विवश करना
- दुर्व्यवहार करने, अपमानित करने, अपमानित या नीचा दिखाने की लैंगिक प्रवृत्ति का कोई अन्य कार्य अथवा जो प्रतिष्ठा का उल्लंघन करता हो या कोई अन्य अस्वीकार्य लैंगिक प्रक़ति का हो।
(3) मौखिक और भावनान्तम हिंसा
- अपमान
- गालियॉं देना
- चरित्र और आचरण पर दोषारोपण
- पुत्र न होने पर अपमानित करना
- दहेज इत्यादि न लाने पर अपमान
- नौकरी करने से निवारित करना
- नौकरी छोड़ने के लिये दबाव डालना
- घटनाओं के सामान्य क्रम में किसी व्यक्ति से मिलने से रोकरना
- विवाह नहीं करने की इच्छा पर विवाह के लिये विवश करना
- पसंद के व्यक्ति से विवाह करने से रोकना
- किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने के लिए विवश करना
- आत्महत्या करने की धमकी देना
- कोई अन्य मौखिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार
(4) आर्थिक हिंसा
- बच्चों के अनुरक्षण के लिये धन उपलब्ध न कराना
- बच्चों के लिए खाना, कपड़े और दवाइयॉं उपलब्ध न कराना
- रोजगार चलाने से रोकना अथवा उसमें विघ्न डालना
- रोजगार करने के अनुज्ञात न करना
- वेतन पारिश्रमिक इत्यादि से आय को ले लेना
- वेतन पारिश्रमिक उपभोग करने का अनुज्ञात न करना
- घर से निकलने को विवश करना
- महिला के प्रति हिंसात्मक व्यवहार का वैधानिक स्वरूप और उत्पीड़क व्यक्ति पर वैधानिक सजा का प्रावधान
उत्पीडि़त महिला के साथा हिंसात्मक व्यवहार (स्वरूप) वैधानिक अपराध वैधानिक संभावित धारा उत्पीड़क के प्रति सजा का प्रावधान:-
1 मानसिक हिंसा- बेइज्जत करना, ताने देना, गाली-गलौच करना, झूठा आरोप लगाना, मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा न करना एवं मायके से न बुलाना इत्यादि धारा 498, सज़ा 3 साल
हिंसा की धमकी- शारीरिक प्रताड़ना, तलाक एवं मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा न करने की धमकी देना। पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा मानसिक या शारीरि कष्ट देना। धारा 498, सज़ा 3 साल
2 झूठा आरोप लगाना या बेइज्जत करना। धारा 499, सज़ा 2 साल
3 साधारण शारीरिक हिंसा- चांटा मारना, धक्का देना और छीना झपटी करना। तामाचा मारना, चोट पहुंचाना धारा 319, सज़ा 3 माह
4 साधारण शारीरिक हिंसा – लकड़ी या हल्की वस्तु से पीटना, लात मारना, घूंसा मारना, माचिस या सिगरेट से जलाना। आत्महत्या के लिए दबाव डालना, साधारण या गंभीर हिंसा धारा 306, सज़ा 3 साल
5 अत्यंत गंभीर हिंसा– गंभीर रूप से पीटना जिससे हड़डी टूटना या खिसकना जैसी घटनाएं शामिल है। गंभीर रूप से जलाना, लोहे की छड़, धारदार वस्तु या भारी वस्तु से वार करना। गंभीर हिंसा – लोहे की छड़, तेज धार वस्तु का प्रयोग।धारा 232, सज़ा 7 साल
दहेज मृत्यु धारा 304, सज़ा आजीवन कारावास
महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से हिंसा या जबरदस्ती करना। धारा 54, सज़ा 2 साल
अपहरण, भगाना या महिला को शादी के लिये विवश करना। धारा 366, सज़ा 10 साल
नाबालिक लड़की को कब्जे में रखना धारा 366, सज़ा 10 साल
बलात्कार (सरकारी कर्मचारी द्वारा या सामूहिक बलात्कार अधिक गंभीर माने जाते हैं) धारा 376 2- सज़ा 10 वर्ष की उम्र कैद
पहली पत्नी के जीवित होते हुए दूसरी शादी करना धारा 494, सज़ा 7 साल
व्यभिचार धारा 497, सज़ा 5 साल
व्यभिचार धारा 497, सज़ा 5 साल
महिला की शालीनता को अपमानित करने की मंशा से अपशब्द या अश्लील हरकतें करना धारा 509, सज़ा 1 साल
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
घरेलू हिंसा की परिभाषा :-
इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ घरेलू हिंसा शब्द का व्यापक अर्थ लिया गया है। इसमें प्रत्यर्थी का कोई भी ऐसा कार्य, लोप या आचरण घरेलू हिंसा कहलाएगा, यदि वह व्यथित व्यक्ति (पीडि़त) के स्वास्थ्य की सुरक्षा, जीवन, उसके शारीरिक अंगों या उसके कल्याण को नुकसान पहुंचाता है या क्षतिग्रस्त करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है। इसमें व्यथित व्यक्ति का शारीरिक दुरुपयोग, शाब्दिक या भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग शामिल है। (धारा 3-क) राज्य सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत सभी उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग एवं समस्त बाल विकास परियोजना अधिकारियों एवं समस्त प्रचेताओं को कुल 574 अधिकारियों को संरक्षण अधिकारी नियुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त संरक्षण अधिकारी संविदा के आधार पर स्वीकृत किये गये हैं। राज्य में अभी तक 87 गैर-शासकीय संस्थाओं को सेवाप्रदाता के रूप में पंजीकृत किया गया है तथा 13 संस्थाओं को आश्रयगृह के रूप में अधिसूचित किया गया है।
राज्य में सरकार के अधीन संचालित सभी जिला अस्पतालों, सेटेलाइट अस्पतालों, उपजिला अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों को चिकित्सा सुविधा के रूप में अधिसूचित किया गया है। मजिस्ट्रेट द्वारा किसी प्रकरण में परामर्शदाता नियुक्त करने हेतु जिलों में परामर्शदाताओं की सूची उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास विभाग (जिला संरक्षण अधिकारी) द्वारा तैयार की जाती है। व्यथित महिलाओं को तुरंत राहत पहुंचाने आदि के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रावधान किया गया है। प्रत्येक जिले में आवश्यकतानुसार राशि आवंटित की गई है। घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम की उपयुक्त क्रियान्वति एवं प्रबोधन की दृष्टि से जिला महिला सहायता समिति को शीर्ष संस्था बनाया गया है।
व्यथित महिला किससे सम्पर्क करे-
संरक्षण अधिकारी से सम्पर्क कर सकती है। (सम्बन्धित उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास, बाल विकास परियोजना अधिकारी एवं प्रचेता) सेवा प्रदाता संस्था से सम्पर्क कर सकती है। पुलिस स्टेशन से सम्पर्क कर सकती है। किसी भी सहयोगी के माध्यम से अथवा स्वयं सीधे न्यायालय में प्रार्थना पत्र दे सकती है।
व्यथित महिला को राहत-
इस अधिनियम के अन्तर्गत व्यथित महिला को मजिस्ट्रेट उसके संतान या संतानों को अस्थाई अभिरक्षा, घरेलू हिंसा के कारण हुई किसी क्षति के लिए प्रतिकार आदेश एवं आर्थिक सहायता के लिए आदेश दे सकते हैं। साथ ही आवश्यकता पडऩे पर ‘साझा घरÓ में निवास के आदेश भी दिए जा सकते हैं। अधिनियम की धारा 33 के अन्तर्गत न्यायालय द्वारा पारित संरक्षण आदेश की अनुपालना नहीं करने पर प्रत्यर्थी को एक वर्ष तक का दंड एवं बीस हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों का दंड दिया जा सकता है।
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