राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम (एनजेएसी) 2014 अधिसूचित-
चीफ जस्टिस ने एनजेएसी सदस्यों के चयन के पैनल का हिस्सा बनने से किया इनकार
हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में जजों को अपॉइंट करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) प्रकरण में एक नया मोड़ आ गया है। भारत के चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने छह सदस्यीय आयोग में दो प्रमुख व्यक्तियों के चयन के लिए तीन सदस्यीय पैनल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।संविधान पीठ उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति से जुड़े इस नए कानून की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। तीन सदस्यीय पैनल में चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता हैं, जो उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति से संबंधित छह सदस्यीय एनजेएसी में दो मशहूर व्यक्तियों को चुनने और उनकी नियुक्ति के लिए अधिकृत हैं।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को 13 अप्रैल 2015 को अधिसूचित किया. इसका उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय एवं देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव लाना है.राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को अधिसूचित करने के साथ ही यह कानून लागू हो गया और पुरानी प्रणाली खत्म हो गई.
संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 1 की उपधारा (2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने इसे अधिसूचित किया. इसके साथ ही यह अधिनियम प्रभावी हो गया.
इसी तरह 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम , 2014' (2014 का 40) की धारा 1 की उपधारा (2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने इसे भी अधिसूचित किया.
दोनों ही अधिनियम उसी दिन से प्रभावी हुआ जिस दिन केंद्र सरकार ने उन्हें सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया.
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के मुख्य प्रावधान -
• संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की संरचना एवं कामकाज का जिक्र है.
• अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है.
• पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली की तरह ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के अध्यक्ष भी भारत के प्रधान न्यायाधीश ही होंगे.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, भारत के प्रधानमंत्री की समिति द्वारा मनोनीत दो विख्यात व्यक्ति होंगें.
• दो विख्यात व्यक्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति करेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता अथवा विपक्ष का नेता न होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे. कानून की धारा 5(6) कहती है कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी की नियुक्ति के लिए सहमत नहीं हो तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' की संरचना को समावेशी बनाने के मकसद से इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि एक जाने-माने व्यक्ति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों, अलपसंख्यकों अथवा महिलाओं के वर्ग से मनोनीत किया जाएगा.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' अपने नियम खुद ही तैयार करेगा.
पृष्ठभूमि -
'संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014' और ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014' नामक दो विधेयक 13 अगस्त, 2014 को लोकसभा में और 14 अगस्त 2014 को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गए थे. इसके बाद इन विधेयकों का अनुमोदन निर्धारित संख्या में राज्य विधानसभाओं ने कर दिया और फिर इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी इन्हें मिल गई. 'संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014' को संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम का रूप दिया गया, जबकि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को 31 दिसंबर, 2014 को भारत के राजपत्र में प्रकशित किया गया.
विश्लेषण-
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून पर सुनवाई करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ बना दी गई है. ये पीठ 15 अप्रैल 2015 को मामले की सुनवाई शुरू करेगी.
अधिनियम की धारा 5(6) के विश्लेषण से स्पस्ट होता है कि इसमें प्रधान न्यायाधीश के नजरिये को नजरअंदाज करने की संभावना है, जबकि सर्वोच्च न्यायलय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मामले में कह चुकी है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश की राय नजरअंदाज नहीं की जा सकती, जबकि नये कानून के मुताबिक आयोग का अल्प समूह (दो सदस्य) ऐसा कर सकते हैं.
नये कानून में दो विख्यात व्यक्तियों की योग्यता क्या होगी यह तय नहीं किया गया है और न ही यह तय है कि वे किस क्षेत्र से चुने जाएंगे जबकि इन दो सदस्यों के पास बाकी के चार सदस्यों की राय पलटने का अधिकार होगा.
क्या था पुराना कोलेजियम प्रणाली-
-जजों की नियुक्ति के लिए लगभग 20 साल पहले इस तरीके को अपनाया गया था जिसे कोलेजियम (जजों का समूह) कहा जाता है।
-कोलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जज होते हैं। यह वकीलों के पैनल से जजों के उम्मीदवारों का चयन करता है। चयन करने के बाद कोलेजियम जजों की नियुक्ति को लेकर अपनी सिफारिश सरकार को भेजता है।
-सरकार कोलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों को मंजूरी देकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करती है। इस पूरी प्रक्रिया में सरकार का कोई दखल नहीं होता।
कोलेजियम को क्यों बदलना चाहती है सरकार-
-1993 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही एक फैसले से कॉलेजियम सिस्टम कायम किया था। मगर इसके तहत नियुक्ति में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के आरोप लगातार बढ़ते चले गए।
-कई कानूनविद और विशेषज्ञ देश की अदालतों में न्यायाधीशों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया (कोलेजियम) को पारदर्शी और समावेशी नहीं मानते हैं।
-हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति,न्यायाधीशों द्वारा करने की मौजूदा प्रणाली ने संरक्षणवाद और भ्रष्टाचार का रूप ले लिया है।
-वर्तमान कोलेजियम व्यवस्था में सिर्फ न्यायपालिका का बोलबाला है,इसमें कार्यपालिका का कोई दखल नही है।
-जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने हाल ही में जजों की नियुक्ति में कोलेजियम पर दबाव डालने की प्रक्रिया का खुलासा किया है।
-संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि कोलेजियम प्रणाली एक ‘एक्स्ट्रा कांस्टीटय़ूशनल’ यानी ‘अपर संवैधानिक’ प्रणाली है। इसे लेकर भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। यह उच्चतम न्यायालय की एक व्यवस्था है,जिसके पास जजों की नियुक्ति का पूरा अधिकार है।
-सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश स्वर्गीय जेएस वर्मा समेत कई नामचीन न्यायविद कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं।
-कोलेजियम की मौजूदा प्रक्रिया के दोषपूर्ण होने की मिसाल कोलकाता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सौमित्र सेन और जस्टिस पीडी दिनाकरन के मामले के रूप में हमारे सामने आई। इन पर भ्रष्टाचार के आरोप में महाभियोग की प्रक्रिया भी चलाई गई
चीफ जस्टिस ने एनजेएसी सदस्यों के चयन के पैनल का हिस्सा बनने से किया इनकार
हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में जजों को अपॉइंट करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) प्रकरण में एक नया मोड़ आ गया है। भारत के चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने छह सदस्यीय आयोग में दो प्रमुख व्यक्तियों के चयन के लिए तीन सदस्यीय पैनल का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया।संविधान पीठ उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति से जुड़े इस नए कानून की संवैधानिक वैधता के मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। तीन सदस्यीय पैनल में चीफ जस्टिस, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता हैं, जो उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति से संबंधित छह सदस्यीय एनजेएसी में दो मशहूर व्यक्तियों को चुनने और उनकी नियुक्ति के लिए अधिकृत हैं।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को 13 अप्रैल 2015 को अधिसूचित किया. इसका उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय एवं देश के 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव लाना है.राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को अधिसूचित करने के साथ ही यह कानून लागू हो गया और पुरानी प्रणाली खत्म हो गई.
संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 की धारा 1 की उपधारा (2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने इसे अधिसूचित किया. इसके साथ ही यह अधिनियम प्रभावी हो गया.
इसी तरह 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम , 2014' (2014 का 40) की धारा 1 की उपधारा (2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए केंद्र सरकार ने इसे भी अधिसूचित किया.
दोनों ही अधिनियम उसी दिन से प्रभावी हुआ जिस दिन केंद्र सरकार ने उन्हें सरकारी राजपत्र में अधिसूचित किया.
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के मुख्य प्रावधान -
• संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की संरचना एवं कामकाज का जिक्र है.
• अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' द्वारा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है.
• पूर्ववर्ती कॉलेजियम प्रणाली की तरह ही राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के अध्यक्ष भी भारत के प्रधान न्यायाधीश ही होंगे.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' के सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, भारत के प्रधानमंत्री की समिति द्वारा मनोनीत दो विख्यात व्यक्ति होंगें.
• दो विख्यात व्यक्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति करेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री, भारत के प्रधान न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता अथवा विपक्ष का नेता न होने की स्थिति में लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे. कानून की धारा 5(6) कहती है कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी की नियुक्ति के लिए सहमत नहीं हो तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' की संरचना को समावेशी बनाने के मकसद से इस अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि एक जाने-माने व्यक्ति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्गों, अलपसंख्यकों अथवा महिलाओं के वर्ग से मनोनीत किया जाएगा.
• राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' अपने नियम खुद ही तैयार करेगा.
पृष्ठभूमि -
'संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014' और ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014' नामक दो विधेयक 13 अगस्त, 2014 को लोकसभा में और 14 अगस्त 2014 को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गए थे. इसके बाद इन विधेयकों का अनुमोदन निर्धारित संख्या में राज्य विधानसभाओं ने कर दिया और फिर इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी इन्हें मिल गई. 'संविधान (121वां संशोधन) विधेयक, 2014' को संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम का रूप दिया गया, जबकि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को 31 दिसंबर, 2014 को भारत के राजपत्र में प्रकशित किया गया.
विश्लेषण-
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून पर सुनवाई करने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ बना दी गई है. ये पीठ 15 अप्रैल 2015 को मामले की सुनवाई शुरू करेगी.
अधिनियम की धारा 5(6) के विश्लेषण से स्पस्ट होता है कि इसमें प्रधान न्यायाधीश के नजरिये को नजरअंदाज करने की संभावना है, जबकि सर्वोच्च न्यायलय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मामले में कह चुकी है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में प्रधान न्यायाधीश की राय नजरअंदाज नहीं की जा सकती, जबकि नये कानून के मुताबिक आयोग का अल्प समूह (दो सदस्य) ऐसा कर सकते हैं.
नये कानून में दो विख्यात व्यक्तियों की योग्यता क्या होगी यह तय नहीं किया गया है और न ही यह तय है कि वे किस क्षेत्र से चुने जाएंगे जबकि इन दो सदस्यों के पास बाकी के चार सदस्यों की राय पलटने का अधिकार होगा.
क्या था पुराना कोलेजियम प्रणाली-
-जजों की नियुक्ति के लिए लगभग 20 साल पहले इस तरीके को अपनाया गया था जिसे कोलेजियम (जजों का समूह) कहा जाता है।
-कोलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ जज होते हैं। यह वकीलों के पैनल से जजों के उम्मीदवारों का चयन करता है। चयन करने के बाद कोलेजियम जजों की नियुक्ति को लेकर अपनी सिफारिश सरकार को भेजता है।
-सरकार कोलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों को मंजूरी देकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करती है। इस पूरी प्रक्रिया में सरकार का कोई दखल नहीं होता।
कोलेजियम को क्यों बदलना चाहती है सरकार-
-1993 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही एक फैसले से कॉलेजियम सिस्टम कायम किया था। मगर इसके तहत नियुक्ति में भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने के आरोप लगातार बढ़ते चले गए।
-कई कानूनविद और विशेषज्ञ देश की अदालतों में न्यायाधीशों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया (कोलेजियम) को पारदर्शी और समावेशी नहीं मानते हैं।
-हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति,न्यायाधीशों द्वारा करने की मौजूदा प्रणाली ने संरक्षणवाद और भ्रष्टाचार का रूप ले लिया है।
-वर्तमान कोलेजियम व्यवस्था में सिर्फ न्यायपालिका का बोलबाला है,इसमें कार्यपालिका का कोई दखल नही है।
-जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने हाल ही में जजों की नियुक्ति में कोलेजियम पर दबाव डालने की प्रक्रिया का खुलासा किया है।
-संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि कोलेजियम प्रणाली एक ‘एक्स्ट्रा कांस्टीटय़ूशनल’ यानी ‘अपर संवैधानिक’ प्रणाली है। इसे लेकर भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। यह उच्चतम न्यायालय की एक व्यवस्था है,जिसके पास जजों की नियुक्ति का पूरा अधिकार है।
-सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश स्वर्गीय जेएस वर्मा समेत कई नामचीन न्यायविद कोलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं।
-कोलेजियम की मौजूदा प्रक्रिया के दोषपूर्ण होने की मिसाल कोलकाता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सौमित्र सेन और जस्टिस पीडी दिनाकरन के मामले के रूप में हमारे सामने आई। इन पर भ्रष्टाचार के आरोप में महाभियोग की प्रक्रिया भी चलाई गई
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