रविवार, 19 अगस्त 2018

हत्या करने पर लगने वाली आईपीसी की धारा 302 के बारे में वो बातें जो आपको पता होनी चाहिए


भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अनुसार अगर किसी व्यक्ति ने इरादतन किसी की हत्या की है तो उसे आजीवन कारावास के अलावा जुर्माने और यंहा तक की मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है | यह एक गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है |

धारा 302 से जुडी कुछ और महत्वपूर्ण बातें है जो आपको पता होनी चाहिए –

  • अगर अपराध संज्ञेय है तो पुलिस बिना किसी वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है और अपनी जाँच शुरू कर सकती है ऐसे में पुलिस महकमे को किसी भी कोर्ट से इजाजत लेने की जरूरत नहीं होती | सामान्यत ऐसा होता है कि अगर कोई अपराध संज्ञेय नहीं होता तो पुलिस को किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए वारंट की जरुरत होती है और बिना कोर्ट की आज्ञा के जाँच नहीं की जा सकती |
  • साथ ही अगर किसी मौत के केस आरोपी पर आरोप तय करने से पहले इस बात का ध्यान रखा जाता है कि धारा 302 लगाई जाये या नहीं क्योंकि धारा 302 उन मामलों में अधिक स्पष्टता के साथ लगती है जब आरोपी खुद पूरे इरादे के साथ हत्या करने के लिए गया हो और उसने हत्या को अंजाम दिया हो | क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो आईपीसी की धारा 304 को लगाया जाता है जिसमे आरोपी ने इरादे से हत्या नहीं की हो बल्कि कुछ इस तरह के घटनाक्रम हो गये हो कि उसने हत्या करदी हो | धारा 302 और धारा 304 में यही बुनियादी फर्क है और 304 में भी उम्रकैद का प्रावधान होता है लेकिन आमतौर पर सजा की अवधि 5-10 साल होती है और यह अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है इस पर अदालत फैसला लेती है |
  • साथ ही यह इस कानून के अंतर्गत किये गये अपराध समझौता योग्य नहीं होते है |
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