शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

क्या है अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 ?

26 जनवरी, 2016 से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 लागू हो गया।

मुख्य कानून (अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989) में संशोधन के लिए अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक 2015 को लोकसभा द्वारा 4 अगस्त 2015 तथा राज्यसभा द्वारा 21 दिसंबर, 2015 को पारित करने के बाद 31 दिसंबर, 2015 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। 1 जनवरी, 2016 को इसे भारत के असाधारण गजट में अधिसूचित किया गया। नियम बनाए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा इसे 26 जनवरी, 2016 से लागू किया गया।
प्रमुख विशेषताएं

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध किए जाने वाले नए अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं:

सिर और मूंछ के बालों का मुंडन कराना

अत्याचारों में समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना

सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित रखना

मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने और लाने-ले जाने के लिए तथा बाध्य करना

कब्र खोदने के लिए बाध्य करना

सिर पर मैला ढोने की प्रथा का उपयोग और अनुमति देना

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना

जातिसूचक शब्द कहना

जादू-टोना अत्याचार को बढ़ावा देना

सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना

चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्रहरण कर आहत करना

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के किसी सदस्य को घर-गांव और आवास छोड़ने के लिए बाध्य करना

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पूजनीय वस्तुओं को विरूपित करना

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन दुर्व्यवहार करना, यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना और भाषा का उपयोग करना।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य को आहत करने, उन्हें दुखद रूप से आहत करने, धमकाने और उपहरण करने जैसे अपराधों को, जिनमें 10 वर्ष के कम की सजा का प्रावधान है, उन्हें अत्याचार निवारण अधिनियम में अपराध के रूप में शामिल किया गया है। अभी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर किए गए अत्याचार मामलों में 10 वर्ष और उससे अधिक की सजा वाले अपराधों को ही अपराध माना जाता है ।

संशोदन के तहत ऐसे मामलों को तेजी से निपटाने के लिए अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में विशेष रूप से मुकदमा चलाने के लिए विशेष अदालतें बनाना और विशेष लोक अभियोजक को निर्दिष्ट करना।
विशेष अदालतों को अपराध का प्रत्यक्ष संज्ञान लेने की शक्ति प्रदान करना और जहां तक संभव हो आरोप पत्र दाखिल करने की तिथि से दो महीने के अंदर सुनवाई पूरी करना।

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