शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

क्या है प्रधानमंत्री की नई फसल बीमा योजना क्या है खुबिया और खामिया ?

क्या है प्रधानमंत्री की नई फसल बीमा योजना क्या है खुबिया और खामिया ?

नई फसल बीमा योजना इस साल खरीफ की फसल से होगी लागू फसल बीमा योजना का नाम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना रखा गया है जो राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का स्थान लेगी

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों से खाद्यान्न, तिलहन फसलों पर दो फीसद लिया जाएगा प्रीमियम

कपास और बागवानी से जुड़ी फसलों पर पांच फीसद प्रीमियम रखा गया है

नई फसल बीमा योजना में 50 फीसद तक नुकसान को कवर किया जाएगा

पुरानी बीमा योजना में कुल 27 फीसद तक फसल का रकबा होता था कवरअब नई योजना में इसे बढ़ाकर 50 फीसद तक फसलों का रकबा किया जाएगा कवर

नई योजना में भरपाई के लिए निर्धारित नहीं की गई है कोई उच्चतम सीमा

अब बीमा करने के लिए पूरे राज्य में सिर्फ एक ही बीमा कंपनी देगी अपनी सेवाएं एक ही कंपनी द्वारा किया जाएगा फसलों को हुए नुकसान का आकलन

बीमा दावे की 25 फीसद राशि तुरंत पीड़ित किसान के सीधे खाते में जाएगीदशेष दावे का तीन महीने के दरम्यान कर दिया जाएगा किसान को भुगतान

भारतीय कृषि बीमा कंपनी के साथ काम करेंगी निजी क्षेत्र की कंपनियां

इनके लिए सरकारी की ओर से निर्धारित की जाएगी सब्सिडी की राशि

क्या है खास

अभी तक की बीमा योजनाओं में सिर्फ उन्हीं किसानों को शामिल किया जाता था जिन्होंनें सरकारी संस्थानों से फसलों के लिए कर्ज लिया होता था। ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर देखें तो हकीकत यह है कि बैंक या सरकारी वित्तीय संस्थानों से चुनिंदा लोगों को ही फसलों के लिए कर्ज मिल पाता है। जाहिर ज्यादातर किसान साहूकारों या अन्य स्रेतों से कर्ज लेकर फसल तैयार करते हैं। यही वजह है कि पुरानी फसल बीमा योजनाओं में सिर्फ 23 फीसद किसान ही शामिल हो पाए। लेकिन नई योजना में सभी किसानों को शामिल करने का विकल्प दिया है।

यही नहीं, प्राकृतिक आपदा की वजह से बुवाई न होने पर भी किसानों को बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा। फसल कटने के 14 दिन तक अगर फसल खेत में है और कोई आपदा आती है तो नुकसान होने पर किसान को बीमा का पूरा लाभ दिया जाएगा।

किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए एक उपयोगी बीमा योजना लागू करने की अरसे से मांग चल रही थी। पिछले दो साल लगातार सूखे के हालात और प्राकृतिक आपदा से फसलें बर्बाद होने से किसानों की माली हालत बद से बदतर होती जा रही थी। इस समस्या से राहत देने के लिए मोदी सरकार ने नई फसल बीमा को मंजूर की है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के जरिए किसान अब मामूली प्रीमियम देकर फसल बीमा का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सकेंगे। यह बीमा योजना खरीफ के सीजन से शुरू होगी। नई योजना को किसानों की समस्या का जमीनी तौर पर अध्यनन करके तैयार किया गया है।यह योजना मौजूदा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) का स्थान लेगी।


किसानों के हितों की दृष्टि से एनएआईएस तमाम तरह की खामियां थीं। फौरी तौर पर देखें तो नई योजना में ज्यादातर खामियों को दूर करने का प्रयास किया गया है। नई योजना का कार्यान्वय निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियां सरकारी कंपनी भारतीय कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर करेंगी। नई योजना में किसान की फसल की बुवाई से लेकर खलिहान तक के जोखिम को शामिल किया गया है।

जाहिर है फसलों के नुकसान की पर्याप्त भरपाई होने से किसानों में खुशहाली आएगी।विफल रहीं पुरानी योजनाएंकिसानों की फसलों के जोखिम को कवर करने के लिए सरकार पहले भी दो बीमा योजनाएं शुरू कर चुकी है। सबसे पहले वर्ष 1999 में लागू राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना लांच की गई थी लेकिन इस योजना में बड़े पैमाने पर खामियां थीं। जाहिर यह योजना बुरी तरह विफल हो गई जिससे किसानों को दो कौड़ी का फायदा नहीं हो पाया।

तमाम संगठनों की मांग पर सरकार ने वर्ष 2010 में इस योजना में कुछ संशोधन किया। बानगी के तौर पर पुरानी योजना में प्रीमियम की दर बीमा कवर का 15 फीसद है जबकि ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्रों में यह दर 57 फीसद तक हो जाती है। महंगा विकल्प होने के कारण 80 फीसद किसानों ने इस योजना में कोई रुचि नहीं दिखाई।

वर्ष 2014-15 की खरीफ फसल के दौरान सरकार ने मौसम आधारित फसल बीमा पेश की लेकिन इससे भी किसानों का कोई भला नहीं हुआ। किसान इस योजना में शामिल हुए उन्हें नुकसान की भरपाई के नाम 100-200 रपए तक मुआवजा दिया गया जो किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा साबित हुआ।

किफायती प्रीमियम

नई फसल बीमा योजना में अनाज एवं तिलहन फसलों के जोखिम को कवर करने के लिए अधिकतम दो फीसद प्रीमियम रखा गया है। बागवानी व कपास की फसलों के लिए प्रीमियम की दर पांच फीसद निर्धारित की गई है। रबी फसलों के लिए यह दर 1.5 फीसद रहेगी। खरीफ की फसलें ज्यादा कच्ची यानी जोखिम वाली होती हैं इसलिए किसानों को इनके जोखिम की भरपाई के प्रीमियम की दर दो फीसद देनी होगी।

प्रीमियम की शेष राशि केंद्र और राज्य सरकारें बराबर-बराबर वहन करेंगी। खास बात यह है कि फसलों के नुकसाने के दावे की 25 फीसद राशि तत्कला सीधे किसानों के बैंक खाते में जाएगी। बाकी धनराशि का तीन महीने के दरम्यान भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा।

प्रीमियम का गणित

नई योजना में बीमा कवर के लिए किफायती प्रीमियम पर विशेष जोर दिया गया है।

उदाहरण के यदि किसी किसान ने अपनी खरीफ की फसल के लिए 1000 रपए का बीमा कराया है। यदि प्रीमियम की दर 10 फीसद है तो इस बीमा के लिए कुल 100 रपए का भुगतान करना होगा।

इसमें किसान को 1000 रपए पर दो फीसद की दर से 20 रपए देने होंगे जबकि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों चार-चार फीसद यानी 40-40 रपए का भुगतान करेंगी।

शुरुआती आकलन में इस योजना पर सालाना 17600 करोड़ रपए खर्च आने का अनुमान है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारें 8800-8800 करोड़ रपए वहन करेंगी।

जोखिम की पूरी सुरक्षा

अभी तक सरकारी सब्सिडी की ऊपरी सीमा तय होती थी। जाहिर है नुकसान की पूरी भरपाई नहीं हो पाती थी। नई योजना में पूरी भरपाई करने के उपाय किए गए हैं। इस योजना से देश के कम से कम 50 फीसद फसलों के रकबे को बीमा कवर मिलने की उम्मीद है।

इस योजना का फायदा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, विदर्भ, मराठवाड़ा और तटीय क्षेत्रों के किसानों को ज्यादा फायदा मिलेगा। खास बात यह है कि इस बीमा योजना में पूरी बीमित राशि किसानों को दी जाएगी।

क्या है अंदेशा

आमतौर पर किसी भी योजना की खूबियां और खामियां लागू होने के बाद ही उजागर होती हैं। लेकिन नई फसल बीमा में फसल के नुकसान का आधार तय करने की तस्वीर पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को यह पहले से ही सुनिश्चित कर देना चाहिए कि फसल के नुकसान का आकलन खेत की उत्पादकता होगी अथवा औसत या वास्तविक उत्पादन को इसका आधार बनाया जाएगा।

उदाहरण के लिए गेहूं का उत्पादन दो से छह क्विंटल प्रति बीघा तक होता है। यदि ओलावृष्टि से फसल बर्बाद हो जाती है तो नुकसान की भरपाई किस आधार पर की जाएगी। इसके अलावा नुकसान का आकलन कौन करेगी?

यदि यह काम स्थानीय लेखपाल को दिया जाएगा तो क्या वह कमाई करने के लिए मनमानी नहीं करेगा? बहरहाल, किसानों की आर्थिक सुरक्षा के लिए यह एक अच्छी योजना है। यदि इस योजना के लागू करने में पारदर्शिता बरती जाए है तो अब किसान निश्चित रूप से आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होंगे।
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