शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

जीवन बीमा पालिसी कब सरेंडर करें ?

जीवन बीमा पालिसी कब सरेंडर करें ?

जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य आपके परिवार की वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना होता है लेकिन विभिन्न कारणों से हम जीवन बीमा के इसी उद्देश्य को भूल जाते हैं और गलत बीमा पालिसी खरीद लेते हैं। जब हम कोई जीवन बीमा सिर्फ टैक्स बचाने के लिए खरीदते हैं तब यह गलती सबसे ज्यादा होती है। ऐसे में हमें ये बीमा पालिसी सरेंडर करनी पड़ती है या मजबूरी में पालिसी के समय तक चलानी पड़ती है। लेकिन यह निर्णय मुश्किल हो जाता है कि दोनों में से सही विकल्प कौनसा है तो कब कोई जीवन बीमा पालिसी सरेंडर करनी चाहिए। ऐसा करने से पहले किन बातों का खयाल रखें।कौनसी पालिसी की जरूरत नहींअगर आपके पास एक से ज्यादा बीमा पालिसियां हैं तो इस बात का अच्छे से विश्लेषण करें कि कौनसी पालिसी आपकी जरूरत के हिसाब से ठीक नहीं है। आमतौर पर लोग बीमा पालिसी की जरूरत न होने के बावजूद उसका प्रीमियम भरते रहते हैं। कई मामलों में यह प्रीमियम इतना ज्यादा होता है कि अगर उसे कहीं और निवेश किया जाए तो बेहतर रिटर्न प्राप्त हो सकता है। ऐसे में यही कहा जाएगा कि बीमा पालिसी बहुत महंगी है। इसके अलावा अगर बीमा ही लेना है तो एक टर्म प्लान अच्छा विकल्प हो सकता है। अत: अपनी बीमा की जरूरतों का समय-समय पर विश्लेषण करके यह ज्ञात करना चहिए कि आपने जो बीमा पालिसी ली है क्या वह जरूरत के हिसाब से है या आपको बहुत महंगी पड़ रही है जो बीमा पालिसी आपकी जरूरत के अनुकूल नहीं है और उससे बेहतर विकल्प बाजार में मौजूद है तो उसको सरेंडर करना बेहतर हो सकता है।

हालांकि पेडअप भी एक विकल्प होता है लेकिन हर स्थिति में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता।कब करना चहिए सरेंडरकौनसी बीमा पालिसी कब सरेंडर करनी चाहिए। यह निर्णय करना भी आसान नहीं होता। सरेंडर का मतलब है कि आपने जितना प्रीमियम दिया है उसका कुछ ही फीसद वापस मिल पाता है। वर्ष 2014 से पहले की पालिसी पर सरेंडर वैल्यू के लिए एक साधारण सा फार्मूला इस्तेमाल किया जाता है।

आपने जितना प्रीमियम अब तक दिया है उसका 30 फीसद जिसमें पहले साल का प्रीमियम शामिल नहीं किया जाता। इस मूल्य के साथ साल के अंत तक मिले हुए बोनस को जोड़कर सरेंडर वैल्यू निकलती है।

प्राय: पालिसी सरेंडर करने पर आपको थोड़ा नुकसान होता है। अगर आपको बीमा पालिसी चलते हुए कुछ ही वर्ष हुए हैं मसलन 20 साल की पालिसी में आपने सिर्फ पांच साल का प्रीमियम ही दिया है तो सरेंडर करना सही निर्णय हो सकता है लेकिन इसके लिए यह देखना होगा कि आपके इस रकम का क्या करते हैं।मैच्योरिटी का विकल्पअगर बीमा पालिसी को खत्म होने में कुछ ही वर्ष बाकी हैं तो सरेंडर करना सही निर्णय नहीं होगा क्योंकि आप अब तक 80 फीसद से ज्यादा इस पालिसी का लाभ जोड़ चुके हैं और इसको 100 फीसद करने में सिर्फ कुछ ही समय बाकी होगा। अगर इस समय आप सरेंडर करते हैं तो आपको भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा जो वित्तीय निर्णयों से सही नहीं होगा। अगर उसी 20 साल की बीमा पालिसी में सिर्फ चार-पांच साल ही बाकी है तो कोई दूसरा विकल्प इतने कम समय से ज्यादा रिटर्न नहीं दे पाएगा। इसीलिए इस बीमा पालिसी में मैच्योरिटी लेना बेहतर रहेगा।

नियमों का फंडा नए नियमों अनुसार जो पालिसी 2014 के बाद ली गई उनमें सरेंडर वैल्यू बीमा पालिसी के समय के अनुसार बढ़ा दिया गया है। पहले तीन साल में 30 फीसद, चार से सात साल में 50 फीसद और पालिसी के आखरी दो सालों में 90 फीसद। इसके अलावा इनमें लागत को भी कम किया गया है।

इस तरह के बदलाव भी आपकी पुरानी पालिसी को सरेंडर करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं क्योंकि अब बेहतर प्रोडक्ट उपलब्ध हैं। यूलिप पालिसी को सरेंडर करने के लिए जानना जरूरी है कि आपको क्या फंड वैल्यू मिल रही है और क्या लागत आएगी। अगर आज निर्णय लेते हैं जब बाजार खराब स्थिति में है तो यह गलत भी हो सकता है। कुछ साल तक किसी भी यूलिप पालिसी को बंद करने पर सरेंडर चार्ज देना पड़ता है। अगर आपकी फंड वैल्यू कम है तो यह चार्ज दोहरी मार कर सकता है।कितनी राशि मिलेगीवर्ष 2014 के बाद की पालिसी पर नए नियमों के अनुसार सरेंडर वैल्यू मिलेगी जो 30 से लेकर 90 फीसद तक हो सकती है। यूलिप में फंड वैल्यू बाजार के प्रदर्शन पर निर्भर करती है लेकिन यहां पर भी अब नए नियमों के अनुसार पांच साल के बाद ही आप सरेंडर कर सकते हैं। इससे पहले की ट्रेडिशनल पालिसी में प्रीमियम का 30 फीसद ही मिलेगा।
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