जीरो FIR
अपराध दो तरह के होते हैं: असंज्ञेय और संज्ञेय। असंज्ञेय अपराध मामूली होते हैं,मसलन मामूली मारपीट। ऐसे मामले में सीधे तौर पर एफआईआर नहीं दर्ज की जा सकती। दूसरा मामला संज्ञेय अपराध का होता है। ये गंभीर किस्म के अपराध होते हैं जैसे गोली चलाना, मर्डर और रेप आदि। इनमें सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है। अगर शिकायती के साथ किया गया अपराध उस थाने की जूरिस्डिक्शन में नहीं हुआ हो, जहां शिकायत लेकर शिकायती पहुंचता है, तो भी पुलिस को केस दर्ज करना होगा। जब कोई शख्स किसी भी थाने में शिकायत लेकर पहुंचता है, तो पुलिस की पहली ड्यूटी होती है कि वह केस दर्ज करे। मामला अगर संज्ञेय अपराध से जुड़ा हो, तो चाहे अपराध देश के किसी इलाके में क्यों न हुआ हो, किसी भी दूसरे इलाके में केस दर्ज हो सकता है। पुलिस को अपराध के बारे में सूचना देने में देरी न हो, इसलिए जरूरी है कि उस शिकायत को दर्ज किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चाहे अपराध किसी भी इलाके में हुआ हो, पुलिस जूरिस्डिक्शन के आधार पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। पुलिस एफआईआर दर्ज करने के बाद आनाकानी नहीं कर सकती। मकसद यह है कि शिकायती की शिकायत दर्ज कर सबूतों को एकत्र किया जाए। अगर शिकायत दर्ज नहीं की जाएगी, तो छानबीन नहीं होगी और सबूत नष्ट होते रहेंगे। लेकिन एक बार एफआईआर होने के बाद शिकायती का रोल खत्म हो जाता है और स्टेट केस हो जाता है। फिर पुलिस को छानबीन करनी होती है। इस लिहाज से जीरो एफआईआर का प्रावधान काफी कारगर है।
जब भी कोई शिकायत हो और मामला संज्ञेय हो, तो पुलिस न सिर्फ एफआईआर दर्ज करेगी, बल्कि वह शुरुआती जांच भी करेगी ताकि सबूत नष्ट न हों। पुलिस इस तरह की जांच के बाद जांच रिपोर्ट और एफआईआर को संबंधित थाने को रेफर करती है। कई बार रेप आदि की जब शिकायत की जाती है, तो तुरंत पीड़िता का मेडिकल आदि कराना जरूरी होता है। यही वजह है कि जीरो एफआईआर के बाद पुलिस छानबीन करती है और एमएलसी की रिपोर्ट आदि तैयार करती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो सबूत नष्ट होने का खतरा रहता है।
अपराध दो तरह के होते हैं: असंज्ञेय और संज्ञेय। असंज्ञेय अपराध मामूली होते हैं,मसलन मामूली मारपीट। ऐसे मामले में सीधे तौर पर एफआईआर नहीं दर्ज की जा सकती। दूसरा मामला संज्ञेय अपराध का होता है। ये गंभीर किस्म के अपराध होते हैं जैसे गोली चलाना, मर्डर और रेप आदि। इनमें सीधे एफआईआर दर्ज की जाती है। अगर शिकायती के साथ किया गया अपराध उस थाने की जूरिस्डिक्शन में नहीं हुआ हो, जहां शिकायत लेकर शिकायती पहुंचता है, तो भी पुलिस को केस दर्ज करना होगा। जब कोई शख्स किसी भी थाने में शिकायत लेकर पहुंचता है, तो पुलिस की पहली ड्यूटी होती है कि वह केस दर्ज करे। मामला अगर संज्ञेय अपराध से जुड़ा हो, तो चाहे अपराध देश के किसी इलाके में क्यों न हुआ हो, किसी भी दूसरे इलाके में केस दर्ज हो सकता है। पुलिस को अपराध के बारे में सूचना देने में देरी न हो, इसलिए जरूरी है कि उस शिकायत को दर्ज किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि चाहे अपराध किसी भी इलाके में हुआ हो, पुलिस जूरिस्डिक्शन के आधार पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती। पुलिस एफआईआर दर्ज करने के बाद आनाकानी नहीं कर सकती। मकसद यह है कि शिकायती की शिकायत दर्ज कर सबूतों को एकत्र किया जाए। अगर शिकायत दर्ज नहीं की जाएगी, तो छानबीन नहीं होगी और सबूत नष्ट होते रहेंगे। लेकिन एक बार एफआईआर होने के बाद शिकायती का रोल खत्म हो जाता है और स्टेट केस हो जाता है। फिर पुलिस को छानबीन करनी होती है। इस लिहाज से जीरो एफआईआर का प्रावधान काफी कारगर है।
जब भी कोई शिकायत हो और मामला संज्ञेय हो, तो पुलिस न सिर्फ एफआईआर दर्ज करेगी, बल्कि वह शुरुआती जांच भी करेगी ताकि सबूत नष्ट न हों। पुलिस इस तरह की जांच के बाद जांच रिपोर्ट और एफआईआर को संबंधित थाने को रेफर करती है। कई बार रेप आदि की जब शिकायत की जाती है, तो तुरंत पीड़िता का मेडिकल आदि कराना जरूरी होता है। यही वजह है कि जीरो एफआईआर के बाद पुलिस छानबीन करती है और एमएलसी की रिपोर्ट आदि तैयार करती है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो सबूत नष्ट होने का खतरा रहता है।
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