रविवार, 19 अगस्त 2018

POCSO पाक्सो एक्ट क्या है ? पूरी जानकारी

POCSO ACT (Protection of Children from Sexual Offences Act 2012) :
(प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012) वास्तविक तौर पर लैंगिग उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम है। इस एक्ट के तहत ही नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इस एक्ट में बच्चों के साथ होने वाली लैंगिग उत्पीड़न के तहत अलग-अलग सजा का प्रावधान है। पुराने कानून के अनुसार यदि किसी नाबालिग के साथ दुष्कर्म की वारदात सामने आथी थी तो उसके दोषी के साथ सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड का प्रावधान था। हालांकि नए कानून के अनुसार 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप पर फांसी की सजा और 16 साल से छोटी लड़की से गैंगरेप पर उम्रकैद या 20 साल तक की सजा दी जा सकेगी।

POCSO एक्ट में क्या है प्रावधान 
1) भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार सहमति से सेक्स करने की उम्र को 16 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। इसके मुताबिक यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ सहमति या बिना सहमति के यौन कृत्य को करता है तो उसे पॉक्सो एक्ट के तहत सजा दी जाएगी। जबकि कोई पति या पत्नी 18 साल से कम उम्र के जीवनसाथी के साथ यौन कृत्य करता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर मुकदमा चलाया जाता है।
2) पॉक्सो एक्ट के तहत सभी मामलों की सुनवाई विशेष अदालत द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिस पर वह भरोसा करता हो उनकी उपस्थिति में हो ऐसी कोशिश करनी चाहिए।
3) अभियुक्त के किशोर होने पर उस पर किशोर न्यायालय अधिनियम 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जाएगा।
4) पीड़ित के विकलांग/मानसिक या शारीरिक रूप से बीमार होने की स्थिति में विशेष अदालत में उसकी गवाही रिकॉर्ड करने के लिए अनुवादक या विशेष शिक्षक की सहायता ली जानी चाहिए।
5) एक्ट के अनुसार स्वंय को निर्दोष साबित करने का दायित्व अभियुक्त के पास होता है। जिसके तहत झूठा आरोप लगाने, झूठी गवाही देने और किसी की छवि को खराब करने पर सजा का प्रावधान भी होता है।
6) यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों के व्यापार(CHILD TRAFFICKING) को लेकर भी भी सख्त सजा का प्रावधान है।
7) यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है जिसके मुताबिक पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए। इसके तहत बच्चे को आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करवाना और चिकित्सा उपचार प्राप्त करवाना, बच्चे को आश्रय गृह उपलब्ध करवाना आदि व्यवस्थाएं शामिल हैं।
8) एक्ट के अनुसार पुलिस की जिम्मेदारी बनती है कि वह मामले को 24 घंटे के भीतर बाल कल्याण समिति(CWC) के निगरानी में लाए। जिससे बाल कल्याण समिति बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण में जरूरी कदम उठा सके।
9) अधिनियम के मुताबिक माता पिता या किसी अन्य व्यक्ति या बच्चे के विश्वसनीय व्यक्ति की मौजूदगी में मेडिकल जांच का प्रावधान भी है। जांच के लिए ऐसी व्यवस्था का प्रावधान है जो कम पीड़ादायक हो। इसके साथ ही बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
10) एक्ट के मुताबिक यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से किसी बच्चे के ऊपर जुल्म न किया जाए। मामले की सुनवाई स्पेशल अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाना चाहिए। इसी के साथ बच्चे की पहचान को भी गुप्त रखने का प्रयास किया जाना चाहिए। 
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